किसके सिर सजेगा सत्ता का ताज? बंगाल समेत 5 राज्यों के चुनाव परिणामों की मतगणना आज

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नईदिल्ली। कोरोना संकट के बीच देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए है। वहीं हर किसी की नजर नतीजों में टिकी हुई है। आज किसके सर पर ताज सजेगा और कौन सत्ता पाता है इस पर सबकी नजरें टिकी हुई है।

नतीजे बताएंगे कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का ‘खेला होबे’ का दावा सच साबित हुआ या भाजपा का ‘दो मई ममता गई’ का दावा। नतीजे देश में वाम दलों के साथ अंतर्कलह से जूझती कांग्रेस का भी भविष्य तय करेगी।

नतीजे से हर हाल में राष्ट्रीय राजनीति प्रभावित होगी। अगर असम में कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में डीएमके की अगुवाई में विपक्ष को जीत हासिल हुई तो केंद्रीय स्तर पर विपक्ष को एक मंच पर लाने की मुहिम तेज होगी। इसके उलट अगर भाजपा की अगुवाई में राजग को असम, पुडुचेरी और बंगाल में सफलता मिली तो विपक्ष के मनोबल को करारा झटका लगेगा।

ममता के लिए करो या मरो का मुकाबला
एक दशक से बंगाल की सत्ता पर ममता की अगुआई में काबिज तृणमूल कांग्रेस के लिए यह चुनाव करो या मरो की स्थिति वाला है। चुनावी हार से जहां तृणमूल के गहरे सियासी भंवर में डूबने का अंदेशा है।

वहीं जीत विपक्ष की राजनीति में ममता के कद को बहुत बड़ा कर देगा। हार से पार्टी के बिखरने का खतरा है, क्योंकि चुनाव से पहले ही पार्टी में ममता के भतीजे अभिषेक के बढ़ते दखल सहित अन्य कारणों से कई नेता ने पार्टी से किनारा कर लिया है।

भाजपा के लिए भी कम बड़ी नहीं है चुनौती
इस चुनाव में भाजपा के सामने असम में सत्ता बचाने और बंगाल में हर हाल में सत्ता हासिल करने की चुनौती है। पार्टी ने खासतौर पर बंगाल के चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। फिर कोरोना की दूसरी लहर में भारी अव्यवस्था के कारण पार्टी और मोदी सरकार निशाने पर है। चुनाव में बेहतर प्रदर्शन जहां पार्टी की साख को मजबूत करेगा।

वहीं हार या औसत प्रदर्शन से पार्टी की अजेय छवि को करारा झटका लगेगा। चूंकि इन चुनावों में पीएम मोदी पार्टी का चेहरा हैं। ऐसे में नतीजे से उनकी छवि पर भी प्रदर्शन के अनुरूप असर पड़ना तय है।

कांग्रेस की अग्निपरीक्षा
देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने बीते करीब एक दशक में कांग्रेस अर्श से फर्श तक का सफर तय किया है। गांधी परिवार के सदस्य पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के निशाने पर हैं। पार्टी बुरी तरह से अंतर्कलह में डूबी है। ऐसे में अगर केरल और असम की सत्ता हासिल नहीं हुई तो पार्टी में अंतर्कलह चरम पर होगा।

पार्टी की कमान गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को देने की मांग फिर उठेगी। राहुल गांधी पर हमले और तेज होंगे। वैसे भी एग्जिट पोल्स में लगाए गए अनुमान ने कांग्रेस के लिए पहले ही खतरे की घंटी बजा दी है।

डूब जाएगा वाम का अंतिम सितारा
सबसे बड़ी मुश्किल वाम दलों के सामने है। बीते एक दशक में वाम दल विलुप्त होने की कगार पर हैं। कभी पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा की राजनीति में अजेय और हिंदी पट्टी के राज्यों में धमक रखने वाले वाम दल के पास बस दिखाने के लिए अब केरल की सत्ता है। अगर इस राज्य से भी इनकी सत्ता गई तो यह देश में वाम राजनीति के ताबूत में अंतिम कील साबित होगी।

तमिलनाडु में नए समीकरण की उम्मीद
यह पहला विधानसभा चुनाव है जब राज्य में दशकों से राजनीति के पर्याय माने जाने वाली शख्सियत एम करुणानिधि और जयललिता मौजूद नहीं हैं। अन्नाद्रमुक जयललिता का विकल्प नहीं खोज पाया है।

वहीं, द्रमुक ने करुणानिधि के पुत्र स्टालिन पर भरोसा जताया है। अगर अन्नाद्रमुक सत्ता बरकरार रखने में असफल रहती है तो पार्टी में विघटन तय है। द्रमुक की जीत से स्टालिन के नेतृत्व पर मुहर लगेगी। इसके अलावा राज्य में तीसरी सियासी ताकत को उभरने का मौका मिलेगा, जिसकी कोशिश भाजपा बीते चार सालों से कर रही है

क्या कहते हैं पोल और एग्जिट पोल्स
चुनाव के बाद कराए गए एग्जिट पोल्स में एजेंसियाें ने केरल और असम पर परिवर्तन न होने का अनुमान लगाया है। वहीं, तमिलनाडु और पुडुचेरी में बदलाव का अनुमान लगाया है। बंगाल पर राय बंटी हुई है। कुछ एजेंसियों ने तृणमूल कांग्रेस तो कुछ ने भाजपा पर दांव लगाया है।

दो एजेंसियों ने त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी भी की है। सबसे स्पष्ट राय तमिलनाडु, पुडुचेरी और असम को लेकर है। सभी एजेंसियों ने इन राज्यों में क्रमश: द्रमुक, राजग और भाजपा को सत्ता मिलने का अनुमान लगाया है।

ममता की जीत कांग्रेस की हार के मायने
पश्चिम बंगाल में अगर तृणमूल जीती और कांग्रेस को असम और केरल में सफलता नहीं मिली तो इससे विपक्ष की राजनीति में नए समीकरण पैदा होंगे। विपक्ष में चुनाव से पहले ही एनसीपी सुप्रीमो के नेतृत्व में एक मंच पर आने की मुहिम शुरू हुई है।

इससे पहले शिवसेना ने सार्वजनिक तौर पर पवार के नेतृत्व की वकालत की है। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि पार्टी में गांधी परिवार पहले से अपनों के निशाने पर हैं। दूसरी स्थिति में अगर तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के हाथों सत्ता गंवाई तब भी गैर कांग्रेसी चेहरे की अगुवाई में विपक्ष को एक मंच पर लाने की मुहिम शुरू होगी।

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