किसी भी नीति को बनाने से पहले किसानों के हितों का ध्यान रखना चाहिए और उनके विचार को भी..!

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किसान हमारे देश के रीढ़ की हड्डी व देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ी भूमिका

जय जवान, जय किसान’ का नारा दिवंगत लालबहादुर शास्त्री ने दिया था और यह राष्ट्र का नारा बन गया। यह नारा किसान और जवान के कर्तव्यों को दर्शाता है। जवान देश की सीमा पर दुश्मनों पर रात-दिन नजरें गड़ाए हुए रहते हैं, तभी देश के नागरिक सुकून से सोते हैं। उसी तरह अन्नदाता कहलाने वाले किसान दिन-रात मेहनत करके अन्न पैदा करते हैं, तब जाकर हमारी भूख मिटती है।

जहां हम मौसम के अनुरूप सुख-सुविधाओं को जीते हैं, वहीं किसान को मौसम से होने वाले शारीरिक नुकसान की कोई चिंता नहीं होती, चाहे कितनी ही तेज धूप हो जाड़ा हो, बरसात हो। उसे तो सिर्फ अपनी जमीन से निकलने वाले अन्न को होने वाले नुकसान की चिंता होती है। मगर अफसोस कि उसकी इस मेहनत की हमेशा से ही उपेक्षा होती रही है। उसे उसकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।

किसानों की ही वजह से भारत को कृषि प्रधान देश की संज्ञा प्राप्त है। किसान हमारे देश के रीढ़ की हड्डी हैं और उनकी देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ी भूमिका है। अन्न खा कर ही हम अपना जीवन चलाते हैं। उसके विपरीत किसान किस तरह का जीवन जीते हैं? खेत मजदूरों की स्थिति तो और तकलीफदेह होती है। ऐसे ही लोगों पर राजनीति हो रही है।

अगर किसान खेत में जाना छोड़ दे और अनाज न पैदा करे तो इतनी ऊंची इमारतों और महलों में रहने वालों से कुछ कर पाना संभव होगा? आखिर सरकार ने कृषि कानूनों को लाने में इतनी हड़बड़ी क्यों दिखाई? सरकार ने तो कोरोना और पूर्णबंदी की समस्य से जूझ रहे देश को और होने वाले विरोधों को दरकिनार करके कई बिल पास कराए जिसमें कृषि कानून भी एक है। इस हठधर्मिता का मतलब क्या है?

सरकार पर आरोप हैं कि वह देश के नवरत्नों को कुछ पूंजीपतियों के हाथ बेचना चाह रही है और ज्यादातर इस ओर कदम बढ़ाए जा चुके हैं। उसी तरह किसानों को भी पूंजीपतियों के हाथों में देना चाह रही है, क्योंकि सरकार फसल के जिस समर्थन मूल्य की बात कर रही है, जमीनी स्तर पर वह बिल्कुल निराधार साबित हुआ है।

इसकी वजह से किसानों को दिल्ली कूच करना पड़ा, जिनको रोकने के लिए दिल्ली और दिल्ली से सटे राज्यों ने बॉर्डर पर भारी सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया और किसानों पर हमले किए गए। किसी भी नीति को बनाने से पहले किसानों के हितों का ध्यान रखना चाहिए और उनके विचार को भी ध्यान में रखना चाहिए, ताकि नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने निकले किसानों पर लाठियां न चलानी पड़े।

बेनका़ब

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