कोरोना संकट: विदेशी मीडिया के निशाने पर मोदी फ्रांस के अखबार ने की आलोचना

0
219

नई दिल्ली। कोविड-19 के कारण उपजे संकट के मद्देनजर भारत विदेशी अखबारों में लगातार छाया हुआ है। ब्रिटेन का इंडिपेंडेंट हो या गार्जियन। चीन का ग्लोबल टाइम्स हो या फ्रांस का ली मॉण्दे। यहां तक कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश का छोटा-सा अखबार न्यू एज-सब दिल्ली आदि शहरों के श्मशानों में धुधुआती चिताओं की तस्वीरें छापकर त्रासदी पर रिपोर्ट या टिप्पणियां छाप रहे हैं।

फ्रेंच अखबार ली मॉण्दे ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि भारत की मौजूदा कोविड-त्रासदी के लिए दोषी बातों में कोरोना वायरस की अप्रत्याशिता के अलावा जनता को बहला-फुसला कर रखने वाली सियासत और झूठी हेकड़ी भी शामिल है। अखबार ने अस्पतालों और श्मशानों के मंजर का चित्रण करते हुए लिखा है कि महामारी गरीब या अमीर किसी को नहीं बख्श रही। रोगियों के बोझ से चरमराते अस्पताल, गेट पर लगी एम्बुलेंसों की कतार और ऑक्सीजन के लिए गिड़गिड़ाते तीमारदार। ये ऐसे दृश्य हैं जो झूठ नहीं बोलते। फरवरी में जिस कोरोना का ग्राफ नीचे जा रहा था, उसकी लाइन अब लंबवत, खड़ी उठ रही है।

इस हालत के लिए सिर्फ कोरोना वायरस के छलावा को दोषी नहीं माना जा सकता। साफ है कि इसके अन्य कारणों में नरेंद्र मोदी की अदूरदर्शिता, और जनता को बहला-फुसला कर रखने वाली उनकी सियासत शामिल है। आज नियंत्रण से बाहर दिखती स्थिति में विदेशी मदद की दरकार हो रही है।

वर्ष 2020 में अस्तव्यस्त करने वाले पीड़ादायी लॉकडाउन की घोषणा हुई, करोड़ों प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया और फिर 2021 की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी ने सुरक्षा में ढिलाई कर दी। मोदी ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मशविरे की जगह अपने उग्र, जोशीले राष्ट्रवादी भाषणों को तरजीह दी। झुकाव आत्मप्रवंचना की ओर न कि जनता को बचाने की तरफ। इस तरह हालात बद से बदतर हो गए। इस संपादकीय लेख में कुंभ का ज़िक्र भी है। कहा गया है कि इस आयोजन से पवित्र गंगाजल को संक्रमणकारी बना दिया गया,
ली मॉण्दे के लेख में मोदी की बहुप्रचारित वैक्सीन रणनीति की भी कठोर शब्दों में निंदा की गई है। कहा है कि मोदी की वैक्सीन नीति महत्वाकांक्षाओं का पोषण करने वाली थी। यह देखा ही नहीं गया कि देश में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता कितनी है।

फ्रांस के ली मॉण्दे अखबार के अलावा ग्लोबल टाइम्स, इंडिपिंडेंट, गार्जियन आदि ने भी जलती चिताओं के चित्रों के साथ भारत के हालात पर रिपोर्ट छापी हैं। इन अखबारों ने लिखा है कि श्मशान छोटे पड़ रहे हैं। सो, यहां-वहां खाली जगहों पर शव जलाए जा रहे हैं। ग्लोबल टाइम्स ने भारत में रह रहे कोरोना पीड़ित एक चीनी नागरिक के हवाले से लिखा है कि अत्यधिक मौतों के कारण अंत्येष्टि से जुड़ा कारोबार भी चरमरा गया है।

इन तमाम रिपोर्ट्स के बीच बांग्लादेशी अखबार न्यू एज की टिप्पणी बहुत मार्मिक है।
लिखा हैः कोविड महामारी के चलते भारत की हालत उस रात के वक्त सड़क पर खड़े उस जानवर की तरह हो गई है जिसकी आंखों के सामने कार की हेडलाइट चमक रही है और वह समझ नहीं पा रहा कि वह क्या करे। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों आस्ट्रेलिया के एक प्रमुख अखबार ने भारत सरकार की निंदा की थी। तब भारतीय हाई कमीशन ने अखबार को फटकार लगाई थी। लेकिन, क्या विदेशी मीडिया को कोई नियंत्रित कर सकता है?

कॉपी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here