सरकारी भवनों का निर्माण का ठेका देने से लेकर समूची प्रक्रिया किस स्तर के भ्रष्टाचार, लालच का शिकार?

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ऐसे हादसे सुर्खियों में आने और उन पर सवाल उठने के बाद ही सरकार व प्रशासन क्यों जागता?

सरकार को चाहिए कि जो पूर्व में और अब हो रहे ऐसे निर्माणों की जांच कराए, जिससे किसी और हादसे में किसी मासूम की जान ना जा पाएं..!

यह किस से छिपा हैं कि सरकारी ठेके कैसे हासिल किए जाते हैं और किस तरह की सामग्री उसमें इस्तेमाल में लाई जाती हैं, बस हादसा होने का इन्तेजार किया जाता हैं। देश भर में कई ऐसी बड़ी घटनाएं भी हुई हैं जो सरकार में बैठे सियासतदानों को बेनकाब भी कर चुकी है लेकिन भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर कभी लगाम नही लगी हैं मुरादनगर में हुए हादसे में अगर जांच की जाएं तो इसमे भी ऊपर तक भ्रष्टाचार के अंश मिल जाएंगे लेकिन देखा जाता हैं कि कोई भी हादसा होने के कुछ दिन उपरांत आमजन भी भूल जाता और और जांच एजेंसिया भी आखिर सवाल यह हैं कि ऐसे भ्रष्टाचार रूपी
हादसों से कब तक आम नागरिक अपनी जान गवाता रहेगा?
कब सरकारें जागेगी?

हाल ही में हुए मोदीनगर में हुए हादसे पर कुछ सवाल पैदा भी हुए है कि क्या किसी के भीतर पैसे की भूख इतनी ज्यादा हो सकती है कि उसे इस बात की फिक्र तक न हो कि उसके लालच और भ्रष्टाचार की वजह से कितने लोगों की जान जा सकती है! यह घटना इस बात का सबूत है कि सरकारी भवनों या इस तरह के किसी भी निर्माण का ठेका देने से लेकर समूची प्रक्रिया किस स्तर के भ्रष्टाचार का शिकार है।

मुरादनगर श्मशान में हुए हादसे के बाद ठेकेदार और कुछ इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई हुई है, लेकिन क्या इससे समस्या का हल हो जाएगा? कोई ठेकेदार किसी काम का ठेका किन रास्तों से हासिल करता है और निर्माण कार्यों में घटिया सामग्री का इस्तेमाल करके कैसे पैसे बचाता है, इसके बारे में बहुत कुछ गोपनीय नहीं रह गया है। तो क्या निचले स्तर पर कुछ लोगों को जिम्मेदार ठहराने के बजाय कार्रवाई का सिरा उन लोगों तक भी पहुंचेगा, जो इस तरह के भ्रष्टाचार का पोषण करते हैं और संरक्षण देते हैं?

निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और लापरवाही की वजह से सामने आई यह त्रासदी इस तरह कोई अकेली घटना नहीं है। इस वजह से देश भर में बड़े-बड़े हादसे और उनमें लोगों के मारे जाने के मामले अक्सर सुर्खियों में आते हैं। ऐसे हर वाकये के बाद सरकार और प्रशासन की ओर से दुख जताने, हताहतों या उनके परिजनों को मुआवजा देने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बातें करने की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है। लेकिन क्या कभी ऐसी घटना का उदाहरण सामने आया है जिसमें हुई कार्रवाई नजीर बनी और उसने बाकी निर्माण कार्यों में लगे लोगों को डराया हो और उन्होंने भ्रष्टाचार से बचना जरूरी समझा हो?

ऐसा लगता है कि अगर किसी वजह से ऐसे हादसे सुर्खियों में आ जाते हैं और उन पर सवाल उठते हैं तब सरकार तात्कालिक तौर पर सक्रिय दिखने की कोशिश करती है और लोगों का गुस्सा ठंडा होने पर पहले की तरह सब कुछ चलते रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। यह बेवजह नहीं है कि हर कुछ समय बाद दिखने में हादसा लगने वाले ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जिन्हें दरअसल हत्या के मामलों की तरह देखा जाना चाहिए।

बेनकाब

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