भास्कर चुग
देहरादून। चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना जारी करने के साथ ही प्रदेश में पंचायत चुनाव की रणभेरी बज गई है। चुनाव लड़ने के इच्छुक संभावित प्रत्याशी नामांकन दाखिल करने के लिए अपने कागज़ तैयार करने में जुट गए हैं।
वहीं अंतिम रूप से आरक्षण जारी होने के बाद चुनावी अखाड़े से बाहर हुए कई लोग अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। ऐसे लोगों ने आरक्षण के तरीके पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि आरक्षण में जिस तरह से आरक्षित सीटों की संख्या एवं सीटों का निर्धारण किया गया है वह गलत है। उनका कहना है कि इस चुनाव के लिए जारी की गई आरक्षण की सूची में अनुसूचित जाति एवं ओबीसी वर्ग की सीटें घटाकर उनके साथ घोर अन्याय किया गया है, जहां SC, OBC वर्ग की सीटें घटाई गई हैं वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जनजाति अर्थात एसटी की की सीटें बढ़ा दी गईं हैं, जो किसी भी तरह से न्याय संगत नहीं है।
उत्तराखण्ड में पंचायत चुनावों को लेकर हाल ही में जारी हुए आरक्षण पर आरक्षित वर्ग के अनेक दावेदारों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि आरक्षण के विषय पर यदि चुनाव आयोग द्वारा 2011 की जनगणना के आधार पर ये आरक्षण जारी किया गया है तो ग्राम पंचायतों में एसटी, एससी, ओबीसी के आरक्षण को किस आधार पर बढ़ाया घटाया गया है?

उदाहरण के तौर पर विकासनगर ब्लॉक की ग्राम पंचायतों में 2011 के आरक्षण में एसटी के लिए 8 सीटें आरक्षित थी। नए आरक्षण के बाद 5 सीट बढ़ाकर 13 सीट आरक्षित की गई हैं। जबकि एससी की 7 सीटों को घटाकर 6 सीट कर दी गई हैं। इसी तरह ओबीसी सीटों के आरक्षण में भी छेड़छाड़ करते हुए 11 सीटों से घटाकर 7 सीट कर दी गई हैं। इस आरक्षण में एससी एवं ओबीसी वर्ग के साथ अन्याय किया गया है। एसटी की सीटों को बढ़ाये जाने के औचित्य समझ से परे है। जिसको देखकर यह लगता है कि ये प्रकिया पूरी तरह से नियमों के खिलाफ़ है।










