धर्म गुरुओं ने किया यति नर सिम्हानंद की धर्म संसद का विरोध

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समाज में घृणा, विभाजन व बढ़ावा को दुरुपयोग हिंसा को धर्म के पर चिंता

देहरादून। कई संतों के समूह सत्य धर्म संवाद ने यति नरसिम्हानंद द्वारा आयोजित धर्म संसद की निंदा कर हिंदू धार्मिक नेताओं और संगठनों से उसका विरोध करने की अपील की है। 62 हिंदू आध्यात्मिक नेताओं व लिंगायत समुदाय, वर्कारी संप्रदाय, द पालि पंडित प्रोजेक्ट, विश्वनाथ मंदिर, भगवद गीता स्कूल और बालकराम मंदिर आदि की ओर से जारी बयान में सत्य धर्म संवाद ने आध्यामिक नेताओं से हिंदू धर्म की असली भावना को प्रदर्शित करते हुए घृणा और विभाजन के बजाय एकता, सहिष्णुता और संवाद को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया है।

उन्होंने कहा है कि हिंदू धर्म के गहरे और समावेशी धरोहर के संरक्षकों के रूप में, वे अपने समाज में घृणा, विभाजन और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए धर्म के बढ़ते दुरुपयोग से गहरे चिंतित हैं। हिंदू धर्म, इसके शाश्वत आदशों जैसे वसुधैव कुटुम्बकम (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) और सर्व धर्म समभाव (सभी धर्मो का सम्मान) के साथ, हमेशा शांति, स्वीति और एकता का प्रतीक रहा है। हमें यह देखकर दुख होता है कि धर्म के नाम पर कुछ कार्य और बयान इन प्रिय मूल्यों को नष्ट कर रहे हैं और समुदायों के बीच विवाद फैला रहे हैं। हिंदू धर्म जाति आधारित विभाजन और इसके नाम पर किसी भी प्रकार के दमन को स्पष्ट रूप से नकारता है। असली आध्यात्मिकता सभी प्राणियों में दिव्यता को पहचानने और समानता एवं आपसी सम्मान को बढ़ावा देने में है।

आगामी विश्व धर्म सम्मेलन जो 17-21 दिसंबर को आयोजित होने वाला है, और कुछ विशेष धर्मो को लक्षित करने वाली उकसाने वाली बयानबाजी, सनातन धर्म की असली भावना से स्पष्ट रूप से दूर हटने के उदाहरण हैं। ऐसे कृत्य न केवल हिंदू धर्म की आध्यात्मिक पवित्रता को कमजोर करते हैं, बल्कि हमारे देश की नाजुक सामंजस्य और एकता को भी खतरे में डालते हैं। बयान में कहा गया है कि वे उन शब्दों, त्यों या सभाओं की निंदा करते हैं जो घृणा फैलाते हैं, अन्य धर्मो का अपमान करते हैं या हिंसा भड़काते हैं। वे सभी धर्मो के बीच संवाद के माध्यम से पुल बनाने और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने में विश्वास करते हैं। शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व सामूहिक विकास और आध्यात्मिक भलाई की कुंजी है।