मनीषा को इंसाफ दिलाने के लिए भीम आर्मी का कैंडल मार्च

39

 

देहरादून। रविवार को शाम ढलते ही राजपुर रोड पर एक अलग ही नज़ारा देखने को मिला। हाथों में जलती हुई मोमबत्तियाँ, आँखों में आँसू और होठों पर एक ही पुकार – “मनीषा को न्याय दो, दोषियों को फांसी दो।”

आज भीम आर्मी भारत एकता मिशन के नेतृत्व में लोग गांधी पार्क से घंटाघर तक पैदल कैंडल मार्च में शामिल हुए। यह सिर्फ एक विरोध नहीं था, बल्कि एक भावुक आह्वान था—उस बहन मनीषा के लिए, जो अब हमारे बीच नहीं है लेकिन जिसकी आवाज़ समाज को झकझोर गई है।

क्या है मनीषा का मामला?

कुछ समय पहले मनीषा के साथ हुई निर्दयी और शर्मनाक घटना ने पूरे सभ्य समाज को हिलाकर रख दिया था। आरोप है कि कुछ दबंगों ने उसके साथ न केवल अमानवीय व्यवहार किया, बल्कि उसकी जान तक ले ली। यह खबर जब सामने आई, तो हर किसी का दिल दहल गया।

मनीषा की माँ ने रोते हुए कहा था –

> “मेरी बेटी तो चली गई, लेकिन अब मैं चाहती हूँ कि उसकी आत्मा को तभी शांति मिलेगी, जब दोषियों को फांसी पर चढ़ाया जाएगा।”

परिवार का दर्द पूरे समाज का दर्द बन गया और अब यह लड़ाई एक जनआंदोलन का रूप ले चुकी है।

न्याय की पुकार से गूँजा शहर

मार्च में शामिल हर चेहरे पर गुस्से और पीड़ा का मिला-जुला भाव साफ झलक रहा था। बच्चे, महिलाएँ, बुज़ुर्ग—हर कोई मोमबत्ती लिए आगे बढ़ रहा था। जैसे ही कैंडल मार्च घंटाघर पहुँचा, पूरा इलाका न्याय के नारों से गूँज उठा।

> भीम आर्मी भारत एकता मिशन के जिलाध्यक्ष कपिल कुमार ने कहा कि–
“मनीषा हमारी बहन थी, उसकी पीड़ा हमारी पीड़ा है। दोषियों को अगर सख़्त सज़ा नहीं मिली तो समाज में बेटियों की सुरक्षा पर हमेशा खतरा बना रहेगा। हमारी यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक दोषियों को फांसी की सज़ा नहीं मिल जाती।”

कैंडल मार्च की रोशनी ने यह संदेश दिया कि यह लड़ाई सिर्फ मनीषा के लिए नहीं, बल्कि हर उस बेटी के लिए है जो भय और असुरक्षा के साए में जी रही है।
जैसे-जैसे रात गहराती गई, मोमबत्तियों की लौ और तेज़ चमकने लगी—वह लौ एक उम्मीद, एक विश्वास और एक जज़्बे का प्रतीक थी कि मनीषा को इंसाफ ज़रूर मिलेगा।