मौत के बाद भी जाति से मुक्ति नहीं, तार बाड कर अगडी पिछड़ी जाति में बांट दिया शमशान घाट

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बुलंदशहर। देश का संविधान भले ही नागरिकों को समान अधिकार देता हो, लेकिन जातीय भेदभाव अभी विकास की राह में रोड़ा बना हुआ है। आए दिन इंसानियत को शर्मसार करती हुई तस्वीरें सामने आती हैं। ताजा मामला बुलंदशहर के पहासू का है। यहां श्मशान घाट को दो हिस्सों में बांट दिया गया है। एक तरफ अगड़ी जाति के लोग तो दूसरी तरफ दलितों के शव जलते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत चुनाव को देखते हुए ऐसा किया गया है।

पहासु ब्लॉक के बनल गांव में 2017 में श्मशान घाट बनाया गया था। अब एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में श्मशान घाट दो हिस्सों में बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। वीडियो वायरल होने के बाद जिला प्रशासन हरकत में आ गया है। बीडीओ घनश्याम वर्मा का कहना है कि वीडियो सामने आने के बाद मामले की जानकारी हुई है। जांच कराई जा रही है। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

उधर, गांव के रहने सचिन वर्मा ने बताया कि यह जब श्मशान बना था, उसके 6 महीने बाद ही ग्राम प्रधान ने श्मशान के दो हिस्से करा दिए थे। उन्होंने बताया कि एक तरफ दलित और दूसरी तरफ अगड़ी जाति के शवों का अंतिम संस्कार होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया के पैतृक गांव से जातीय भेदभाव की जो तस्वीर सामने आई हैं, वो न सिर्फ इंसानियत को शर्मसार करती हैं, बल्कि सवाल भी खड़ा करती हैं कि डिजिटल इंडिया के नागरिक की सोच इतनी छोटी कैसे हो सकती है?

तार लगाकर बांटा श्मशान घाट
यहां शमशान में इस तरह तारबंदी की गई है, जैसे ये दो देशों की सीमा हो। आप भले ही जानकर हैरान हों, मगर जान लीजिये कि सभी को समान अधिकार देने वाले लोकतांत्रिक देश में ये तारबंदी दलितों के शवों के लिए, उनकी अर्थी के लिए और उसके साथ आने वाले लोगों के लिए की गई है। यानी शमशान में तारबंदी के एक तरफ अगड़ी जाति के लोगों के शव जलाए जाते हैं और तारबंदी के दूसरी तरफ उन दलितों के शव, जिनके लिए शमशान में भी दीवार खड़ी कर दी गई है।

पीएम मोदी भले ही सबके साथ और सबके विकास की बात करते हों, हम चांद पर चले गए हों, देश विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हो चुका हो, या फिर इंडिया डिजिटल हो चला हो लेकिन यहां इंसानों की तो बात ही छोड़िए मुर्दों तक से भेदभाव किया जाता है। यानी बनैल गांव में बने इस शमशान में मुर्दे की जाति देखकर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। सवाल ये है कि जब संविधान समान अधिकार देता है, कानून समान अधिकार देता है, तो फिर समाज के ये कथित ठेकेदार कौन होते हैं, जो इंसान से उसकी धर्म, उसकी जाति को लेकर भेदभाव करते हैं और मरने के बाद उसकी लाश को भी नहीं छोड़ते।

ग्रामीण मानते हैं कि जातीय भेदभाव के चलते इस तरह की तारबंदी किया जाना गलत है, लेकिन जब यहां तारबंदी की गई होगी उस वक्त किसी की ओर से इसका मुखर होकर विरोध नहीं किया गया होगा, क्योंकि अगर किया गया होता,तो ऐसा नहीं होता।