देहरादून। पहाड़ के दूरस्थ गांवों से नौकरी और रोजगार की तलाश में गांव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. वहीं, उत्तराखंड में एक गांव ऐसा भी है, जहां के लोग नौकरी और काम के लिए शहर नहीं जाते. यहां के लोग घर पर ही अपना व्यापार कर जीवन यापन करते हैं. वर्षों से इस गांव का एक भी आदमी गांव छोड़कर बाहर कमाने नहीं गया. तो आइये जानते हैं उत्तराखंड के इस अनोखे गांव की रोचक कहानी.
दरअसल, उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित रौतू की बेली गांव पनीर विलेज के नाम से देश-दुनिया में फेमस है. रौतू की बेली गांव के करीब 250 घरों में करीब 1500 लोग रहते हैं. इस गांव का सभी परिवार पनीर बनाकर बेचने का काम करते है. पहले इस गांव के लोग दूध का व्यापार करते थे, दूध के कारोबार में ज्यादा मुनाफा न होने पर गांव के लोगों ने पनीर बनाने का काम शुरू कर दिया. आज भी इस गांव के लोग पनीर बनाकर बेचने का काम करते हैं. इस गांव के लोग बाहर नौकरी के लिए नहीं जाते।
1980 से दूध का कारोबार बंद कर बनाने लगे पनीर
गांव के लोगों का कहना है कि 1980 के पहले गांव के हर परिवार के लोग दूध का काम करते थे, तब गांव के लोग दूध लेकर दिन में शहरों में जाते और शाम होते-होते घर चले आते. हालांकि, इससे उनका घर चलाना मुश्किल हो रहा था. 1980 के बाद इस गांव के लोग धीरे-धीरे पनीर का कारोबार शुरू किए, इसमें ज्यादा मुनाफा होता देख सभी लोग पनीर बचाने का ही काम करने लगे. एक समय के बाद पनीर उत्पादन यहां के लोगों का मुख्य रोजगार बन गया है. उत्तराखंड राज्य का गठन होने के बाद वर्ष 2003 में उत्तरकाशी जिले के हाईवे का निर्माण किया गया, जो इस गांव से होकर गुजरा. इसके बाद हाईवे पर राहगीरों की संख्या बढ़ी तो गांव के लोग पनीर बनाकर यहां से आने-जाने वालों को भी बेचने लगे. इसके बाद इस गांव का पनीर फेमस होता गया. गांव के लोग पनीर में कोई मिलावट नहीं करते. साथ ही इतना शुद्ध होने के बाद भी सस्ते दाम में बेचते हैं, इस वजह से पनीर की बिक्री बढ़ती गई. गढ़वाल पनीर के नाम से इसे कई बड़े बड़े शहरों में बेचा भी जाता है।
यह है परंपरा-
कहा जाता है कि इस गांव में जो भी नई नवेली दुल्हन आती हैं, उन्हें सबसे पहले पनीर बनाना सिखाया जाता है. पनीर बनाने के इस व्यापार में घर के बुजुर्ग, युवा और महिलाएं सब शामिल हैं. इस गांव से युवाओं का पलायन भी नहीं होता. घर पर ही रहकर पनीर बेच कर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं।
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