देहरादून। प्रदेश की केदारनाथ सीट पर हुए उपचुनाव की जीत भाजपा के लिए निकाय चुनाव को संजीवनी बनने जा रही है। इसके चलते अब भाजपाइयों में निकाय चुनाव को लेकर जोश भरने लगा है। बताते चलें कि सत्तारूढ भाजपा के लिए बदरीनाथ तथा मंगलौर का विधान सभा उपचुनाव सियासी रूप से पस्त कर गया था।
अयोध्या और बदरीनाथ हारे के बाद अब केदारनाथ की बारी है… का नारा बुलंद करने वाली कांग्रेस के हाथ केदारनाथ सीट नहीं आ पाई। इसके चलते कांग्रेस की हसरतों पर एक तरह से पानी फिर गया है। बदरीनाथ तथा मंगलौर उपचुनाव में हार से भाजपा के तमाम दावेदार निकाय चुनाव में दावेदारी करने से कतराने लगे थे। इन दो उपचुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से कांग्रेसियों की उम्मीदें सातवें आसमान पर चढ़ गई थी। इसके चलते ही निकाय चुनाव को लेकर कांग्रेस के भीतर दावेदारों की बाढ़ सी आ गई थी। भाजपा में दावेदारी को लेकर कहीं कोई उत्साह नहीं दिखाई पड़ रहा था, अब जबकि केदारनाथ सीट का परिणाम भाजपा के पक्ष में आ गया है तो निकाय चुनाव के लिए दावेदारी करने की सोच रहे भाजपाइयों की उम्मीदें तेज़ी से परवान चढ़ने लगी है।
कुछ अपवादों को छोड़ कर यह सर्वविदित है कि जिसकी सत्ता उसका उपचुनाव के तहत सत्तारूढ पार्टी की झोली में ही उपचुनाव की सीट जाती रही है। राज्य में बदरीनाथ तथा मंगलौर के उपचुनाव दोनों सीटें विपक्षी कांग्रेस की झोली में जाने से भाजपा की सियासत को झटका लग गया था। इस बार केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी आशा नौटियाल की जीत अब भाजपा सरकार के लिए संजीवनी बन कर लौटी है। दो विधान सभा उपचुनावों में पराजय के चलते ही राजनीतिक समीक्षक इस बात को हवा दे रहे थे कि उप चुनावों में हार के चलते निकाय चुनावों को लगातार आगे खिसकाया जाता रहा है। वैसे इस साल दो दिसंबर तक त्रिस्तरीय पंचायत के तहत जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव भी हो जाने थे किंतु राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण अभी निकाय चुनाव ही नहीं हो पाए हैं। कहा जा सकता है कि अब एक साल विलंब के बाद चुनाव होंगे। अब हालात भाजपा के अनुकूल बन गए हैं तो अब निकाय चुनाव के भाजपा दावेदारों के चेहरों पर मुस्कान लौटने लगी है। कहा जा सकता है कि अब इस चुनाव के जरिए भाजपा नगर निकायों में भी अपना वर्चस्व कायम करने की जुगत में लग जाएगी। अब भाजपा रणनीतिक तौर पर कांग्रेस को निकाय चुनावों में मात देने के लिए कहीं कोई कोर कसर छोडने वाली नहीं है।
वर्ष 2017 से लगातार भाजपा उत्तराखंड में राज कर रही है। इसके चलते ही 2018 में निकाय चुनावों में भाजपा ने अपना परचम लहराया था। 2022 के आम चुनाव में भी भाजपा ने सत्ता में वापसी की किंतु बदरीनाथ तथा मंगलौर सीट पर पराजय के चलते निकाय चुनावों को लेकर भाजपा की उम्मीदों को झटका लगा था। वैसे इसी साल निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव होने थे किंतु इन चुनावों को लगातार तमाम तकनीकी कारणों से आगे खिसकाया जाता रहा अथवा लटकाया जाता रहा। अब परिस्थितियां केदारनाथ उपचुनाव के बाद पलट गई है। गढ़वाल संसदीय सीट की बात करें तो 14 में से एक मात्र बदरीनाथ सीट पर ही कांग्रेस काबिज है। 2022 के विधान सभा चुनाव में बदरीनाथ सीट पर राजेंद्र सिंह भंडारी ने कांग्रेस की लाज बचाई थी। मार्च माह में कांग्रेस को अलविदा करने के बाद भंडारी भाजपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर फिर कब्जा जमा दिया और लखपत बुटोला जीत कायम करने में सफल रहे। मंगलौर की सीट बसपा की झोली में थी किंतु उपचुनाव में यह सीट भी कांग्रेस की झोली में आ गई। इन परिस्थितियों ने नगर निकायों की कुर्सियों पर नजरें गाडे भाजपाइयों को निराश कर रख दिया था। अब जबकि जल्द निकाय चुनाव की संभावना जताई जा रही है तो भाजपा में भी दावेदारों की बाढ आने की संभावनाओं को बल मिलने लगा है। इसी तरह के हालात राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी बन गए हैं। इसलिए अब भाजपाइयों को फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे। इसके चलते ही योग्य प्रत्याशियों को मैदान में उतार कर भाजपा अपना वर्चस्व नगरों में कायम कर सकती है। वैसे केदारनाथ सीट पर हुए उपचुनाव में आम लोग यात्रा को लेकर काफी गुस्से में थे। महंगाई और बेरोजगारी का सवाल भी केदारनाथ की फिजाओं में रेंग रहा था। निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान के पक्ष में काफी वोट आने के चलते भाजपा की जीत की राह प्रशस्त हुई और कांग्रेस को पराजय झेलनी पड़ी। इसलिए कहा जा सकता है कि हालात भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण तो हैं किंतु चुनावी मैनेजमेंट के बेहतर होने के चलते भाजपा अब नगरों में मात खाने की स्थिति में नहीं है। देखना यह है कि केदारनाथ की जीत भाजपा के लिए निकाय चुनाव में क्या गुल खिलाती है इस पर सबकी नजरें टिक गई है।