खुर्द- बुर्द होती गोल्डन फॉरेस्ट की जमीन, सड़कछाप बने करोड़ों के मालिक

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देहरादून। रजिस्ट्री फर्जीवाड़े की जांच के लिए गठित एसआईटी की जांच में गोल्डन फॉरेस्ट की हजारों हेक्टेयर जमीन को फर्जी तरीके से बेचने का खुलासा हुआ है। यह तथ्य सामने आया है कि गोल्डन फॉरेस्ट की समस्त जमीन राज्य सरकार में निहित हो गई थी। इसके बाद भी इस पर सरकारी कब्जा नहीं लिया गया और हजारों हेक्टेयर जमीन खुर्द-बुर्द हो गई। इस मामले में रजिस्ट्रार कार्यालय के एक रिटायर अधिकारी की भूमिका भी संदिग्ध है। इस सारे खेल में कुछ लोग तो फर्श से अर्श पर पहुंच गए लेकिन बड़ी संख्या में लोग इस में उलझ कर अपने खून पसीने कि कमाई दांव पर लगा बैठे। आज हजारों की संख्या में लोग इन जमीनों पर घर बनाकर रह रहे हैं। इनमें अधिकतर लोगों ने ज़मीन की रजिस्ट्री कराई हुई है और बाकायदा एमडीडीए से नक्शे पास करा घर बनाकर रह रहे हैं तो कुछ लोग औने पौने दामों में खरीद कर अवैध तरीके से बसे हुए हैं।

एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर पांच नए मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। रजिस्ट्री फर्जीवाड़े की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल ने गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी के फर्जीवाड़े की पूरी रिपोर्ट शासन को भेज दी है। इसमें बताया गया है कि गोल्डन फॉरेस्ट की 4000 एकड़ से अधिक सरकारी जमीन है। यह खासकर विकास नगर, मिसरास पट्टी, सहस्रधारा रोड़, डांडा लखौंड, चामासारी, आम वाला, चालांग, नागल, किरसाली, झाजरा, लाडपुर, रायपुर, सहस्त्रधारा, मसूरी और धनोल्टी समेत आसपास के इलाकों में है।

इन जमीनों की अवैध तरीके से बिक्री की जा रही है। लंबे समय से गोल्डन फॉरेस्ट की जमीनों पर कब्जों के चलते राजस्व विभाग ने काफी जमीन विभिन्न सरकारी विभागों को आवंटित कर दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है। मामले की जॉच सही से हुई तो शायद यह उत्तराखंड के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा।

एसआईटी के विशेष कार्याधिकारी ने रिपोर्ट में बताया है कि हजारों हेक्टेयर भूमि जो पूर्व में ही गोल्डन फॉरेस्ट को विक्रय की जा चुकी है, उसे अन्य व्यक्तियों को बेचना पाया गया है। यह काम साजिश के तहत किया। एसआईटी ने कहा कि यह प्रतीत हो रहा है कि एक भूमि को दो बार बेचने के लिए कई लोगों ने सिंडिकेट बनाकर काम किया।

कैसे होता है खेल?

90 के दशक में जब यह जमीनें रजिस्टर्ड एग्रीमेंट या रजिस्ट्री के माध्यम से गोल्डन कंपनी खरीद रही थी तो किसी कारणवश इनका दाखिल खारिज नही हो पाया जिसके चलते यह जमीनें मूल मालिकों के नाम पर ही चलती रही। इसीका फायदा इन लोगों ने राजस्व विभाग के कर्मचारियों से मिलकर उठाया और इन ज़मीनों को अपने या अपने लोगों के नाम से ख़रीद लिया।

एक ही भूमि कई व्यक्तियों को बेचने के मामले भी सामने आए हैं। जिसे पहले बेची गई वह और जिसे बाद में बेची गई उसने भी कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई है। इससे आपसी सांठगांठ साबित हो रही है। गोल्डन फॉरेस्ट इंडिया की भूमि राज्य सरकार में निहित होने के बावजूद उसे बेचा गया। राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाने की नीयत से यह किया गया।

गोल्डन फारेस्ट के मालिक की मृत्यु हो चुकी है। उनके परिवार से जुड़े विश्वस्त सूत्र के अनुसर उनके वारिस निखिल कान्त स्याल आजकल सुप्रीम कोर्ट में केस की पैरवी में व्यस्त है ताकि जिन लोगो ने कंपनी में पैसा लगाया था जल्द से जल्द उनका पैसा वापस किया जा सके।