देहरादून। गोल्डन फारेस्ट की ज़मीन को धोखा धडी कर दोबारा बेचने के आरोपियों को कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया है। बचाव पक्ष के वकील ने आरोपित को बेदाग बताया जबकि सरकारी वकील की दलील थी कि उस पर गंभीर आरोप हैं। दोनों पक्षों की जिरह सुनने के बाद द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश महेश चंद्र कौशिवा की अदालत ने धोखाधड़ी के आरोपित राजीव दुबे की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी। मामले में राजपुर थाने में दर्ज मुकदमे के आरोपित ने कोर्ट से अग्रिम जमानत की मांग की थी।
बचाव पक्ष के वकील ने कई कानूनी दस्तावेजों का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत की मांग की। बचाव पक्ष के तरफ से पेश वकील ने कहा कि मुकदमे में आरोपित का नाम प्रारंभिक रूप से कहीं नहीं है। उन्होंने कोई गलत धनराशि प्राप्त नहीं की है। उस रजिस्ट्री को 26 वर्ष से ज्यादा हो चुका है। बावजूद पुलिस उन्हें परेशान कर रही है।
गोलडन फॉरेस्ट की जमीन को अपना बताते हुए फर्जी दस्तावेज के आधार पर बेच दिया गया था। गौरतलब है कि गोल्डन फारेस्ट की जमीन को लेकर राजधानी देहरादून समेत पूरे प्रदेश में कई मुकदमे दर्ज हैं। आरोपितों ने 1998 में उक्त भूमि को पांच विक्रय अभिलेखों के माध्यम से सुरेन्द्र उप्पल को बेच दिया। सन् 1995 में बेची गई भूमि की एवज में धनराशि प्राप्त हो गई थी। पूर्व निष्पादित मुख्तारनामें के आधार पर वर्तमान आरोपित ने उक्त भूमि को पांच विक्रय अभिलेखों के माध्यम से फिर गलत तरीके से बेचकर धनराशि ली गई। जिला शासकीय अधिवक्ता का तर्क था कि वर्तमान आरोपित का अपराधिक इतिहास है। इस अपराध में उसकी भूमिका अन्य सह अभियुक्त स्वतन्त्र स्वरूप एवं विनय सक्सेना से अलग है। अन्य सह-अभियुक्त जिसे पूर्व में जमानत दी गई वह वर्तमान में सरकारी गवाह है। अभियुक्त पर लगाये गये आरोप गम्भीर हैं। इसलिए सरकारी वकील ने अग्रिम जमानत के खिलाफ दलील देते हुए कहा कि प्रार्थना पत्र खारिज किया जाए।