प्रदेश में सहकारिता चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल गई है. अब पंचायत चुनाव के बाद जल्द ही राज्य में सहकारिता चुनाव भी संपन्न करवाए जाएंगे.
देहरादून। उत्तराखंड में पिछले डेढ़ साल से सहकारिता में PACS समितियां के चुनाव नहीं हो पाए हैं. जिसके कारण सहकारिता विभाग की तमाम योजनाएं धरातल पर सहकारिता समितियां के माध्यम से नहीं बल्कि जिला विकास अधिकारी के माध्यम से धरातल पर उतर रही हैं. सहकारिता समितियां के पूर्व पदाधिकारी को कहना है कि ऐसे में जनता की विभाग से दूरी बढ़ जाती है. योजनाएं सही तरीके से धरातल पर नहीं उतर पाती है. यही वजह है कि हमें जल्द से जल्द सहकारिता समितियां के चुनाव करवाने चाहिए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश का कोऑपरेटिव विभाग 300 करोड़ के फायदे में था. प्रदेश के सहकारिता विभाग ने यह फायदा मात्र कुछ ही सालों में अर्जित किया है.वर्ष 2018 में समितियां का गठन हुआ था. उस समय कोऑपरेटिव सोसाइटीया 57 करोड़ के घाटे में चल रही थी. प्रदेश के 10 जिला सहकारी बैंक और एक स्टेट कोऑपरेटिव बैंक अपने भारी एनपीए से गुजर रहा था. वहीं, कुछ ही सालों में सहकारिता विभाग के अथक प्रयासों के बाद कोऑपरेटिव अब 300 करोड़ के मुनाफे में आ चुका है. एक बार फिर से चुनाव न होने की वजह से इसका नुकसान का खामियाजा आने वाले भविष्य में देखने को मिल सकता है।
कोऑपरेटिव से जुड़े एक पदाधिकारी ने बताया कि सहकारिता मंत्री धन सिंह रावत लगातार कोऑपरेटिव समितियों में पारदर्शी चुनाव को लेकर कटिबंध हैं. उन्होंने कहा प्रदेश स्तर के चुनाव के दौरान कुछ लोगों ने कोर्ट में महिलाओं को मिले आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर की. इसके बाद कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया को रोक दिया. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. जहां से उत्तराखंड में सहकारिता चुनाव को लेकर हरी झंडी मिल गई है।