उत्तर प्रदेश के एक जिले के कोर्ट में तैनात महिला जज ने उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। सीजेआइ को पत्र लिखकर जीवन की निराशा के बारे में बताया। वहीं मामला चर्चा में आने के बाद जज की सुरक्षा में दो महिला सिपाहियों के साथ तीन पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के एक जिले की कोर्ट में तैनात महिला जज ने उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। एक्स व इंटरनेट मीडिया में यह पत्र प्रचलित हुआ है। यह पत्र कब लिखा गया, इसकी जानकारी नहीं है। पत्र में लखनऊ के पड़ोसी जिले में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा अभद्रता का जिक्र है। हालांकि, ‘अस्तित्व टाइम्स’ इस पत्र की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।
जानकारी के मुताबिक़ मामला चर्चा में आने के बाद जज की सुरक्षा में दो महिला सिपाहियों के साथ तीन पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
पत्र में कही है ये बात
महिला जज के नाम से गुरुवार को एक पत्र एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर प्रचलित हुआ। उसमें जज ने यौन उत्पीड़न जैसा संगीन आरोप लगाते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। पत्र में कहा गया- ‘ मैं इसे बेहद दर्द और निराशा में लिख रही हूं। मेरे पास यह प्रार्थना करने के अलावा कोई उद्देश्य नहीं है कि मेरे सबसे बड़े अभिभावक (उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश) मुझे अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दें।’
न्यायिक सेवा में उत्साह के साथ आने और आम लोगों को न्याय दिलाने की बात लिखते हुए पत्र में कहा गया है- ‘सेवा के अल्पकाल में ही खुली अदालत में डायस पर दुर्व्यवहार सहने का दुर्लभ सम्मान मिला। मैं एक अवांछित कीट की तरह महसूस करती हूं और मुझे न्याय की आशा है।’
जांच होने तक जिला जज का चाहा था तबादला
पत्र में आरोप है कि 2022 में उच्च स्तर पर शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जुलाई, 2023 में उच्च न्यायालय की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की। समिति कैसे गवाहों से उच्चाधिकारी के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह समझ से परे है। केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान आरोपित जज का तबादला कर दिया जाए।
मेरी रिट याचिका सुनवाई और मेरी प्रार्थनाओं पर विचार किए बिना आठ सेकंड में खारिज कर दी गई। मुझे लगा जैसे मेरा जीवन, मेरी गरिमा और मेरी आत्मा खारिज कर दी गई है। यह एक व्यक्तिगत अपमान की तरह महसूस हुआ। अब जांच जज और सभी गवाहों की अध्यक्षता में की जाएगी। हम सभी जानते हैं कि इस जांच का क्या हश्र होगा।
सीनियर जज के उत्पीड़न से परेशान महिला जज ने मांगी इच्छा मृत्यु!
उत्तर प्रदेश के एक जिले के कोर्ट में तैनात महिला जज ने उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। सीजेआइ को पत्र लिखकर जीवन की निराशा के बारे में बताया। वहीं मामला चर्चा में आने के बाद जज की सुरक्षा में दो महिला सिपाहियों के साथ तीन पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के एक जिले की कोर्ट में तैनात महिला जज ने उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। एक्स व इंटरनेट मीडिया में यह पत्र प्रचलित हुआ है। यह पत्र कब लिखा गया, इसकी जानकारी नहीं है। पत्र में लखनऊ के पड़ोसी जिले में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा अभद्रता का जिक्र है। हालांकि, ‘अस्तित्व टाइम्स’ इस पत्र की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।
जानकारी के मुताबिक़ मामला चर्चा में आने के बाद जज की सुरक्षा में दो महिला सिपाहियों के साथ तीन पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
पत्र में कही है ये बात
महिला जज के नाम से गुरुवार को एक पत्र एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर प्रचलित हुआ। उसमें जज ने यौन उत्पीड़न जैसा संगीन आरोप लगाते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। पत्र में कहा गया- ‘ मैं इसे बेहद दर्द और निराशा में लिख रही हूं। मेरे पास यह प्रार्थना करने के अलावा कोई उद्देश्य नहीं है कि मेरे सबसे बड़े अभिभावक (उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश) मुझे अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दें।’
न्यायिक सेवा में उत्साह के साथ आने और आम लोगों को न्याय दिलाने की बात लिखते हुए पत्र में कहा गया है- ‘सेवा के अल्पकाल में ही खुली अदालत में डायस पर दुर्व्यवहार सहने का दुर्लभ सम्मान मिला। मैं एक अवांछित कीट की तरह महसूस करती हूं और मुझे न्याय की आशा है।’
जांच होने तक जिला जज का चाहा था तबादला
पत्र में आरोप है कि 2022 में उच्च स्तर पर शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जुलाई, 2023 में उच्च न्यायालय की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की। समिति कैसे गवाहों से उच्चाधिकारी के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह समझ से परे है। केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान आरोपित जज का तबादला कर दिया जाए।
मेरी रिट याचिका सुनवाई और मेरी प्रार्थनाओं पर विचार किए बिना आठ सेकंड में खारिज कर दी गई। मुझे लगा जैसे मेरा जीवन, मेरी गरिमा और मेरी आत्मा खारिज कर दी गई है। यह एक व्यक्तिगत अपमान की तरह महसूस हुआ। अब जांच जज और सभी गवाहों की अध्यक्षता में की जाएगी। हम सभी जानते हैं कि इस जांच का क्या हश्र होगा।
उत्तर प्रदेश के एक जिले के कोर्ट में तैनात महिला जज ने उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। सीजेआइ को पत्र लिखकर जीवन की निराशा के बारे में बताया। वहीं मामला चर्चा में आने के बाद जज की सुरक्षा में दो महिला सिपाहियों के साथ तीन पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के एक जिले की कोर्ट में तैनात महिला जज ने उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। एक्स व इंटरनेट मीडिया में यह पत्र प्रचलित हुआ है। यह पत्र कब लिखा गया, इसकी जानकारी नहीं है। पत्र में लखनऊ के पड़ोसी जिले में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा अभद्रता का जिक्र है। हालांकि, ‘अस्तित्व टाइम्स’ इस पत्र की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है।
जानकारी के मुताबिक़ मामला चर्चा में आने के बाद जज की सुरक्षा में दो महिला सिपाहियों के साथ तीन पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
पत्र में कही है ये बात
महिला जज के नाम से गुरुवार को एक पत्र एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर प्रचलित हुआ। उसमें जज ने यौन उत्पीड़न जैसा संगीन आरोप लगाते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। पत्र में कहा गया- ‘ मैं इसे बेहद दर्द और निराशा में लिख रही हूं। मेरे पास यह प्रार्थना करने के अलावा कोई उद्देश्य नहीं है कि मेरे सबसे बड़े अभिभावक (उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश) मुझे अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दें।’
न्यायिक सेवा में उत्साह के साथ आने और आम लोगों को न्याय दिलाने की बात लिखते हुए पत्र में कहा गया है- ‘सेवा के अल्पकाल में ही खुली अदालत में डायस पर दुर्व्यवहार सहने का दुर्लभ सम्मान मिला। मैं एक अवांछित कीट की तरह महसूस करती हूं और मुझे न्याय की आशा है।’
जांच होने तक जिला जज का चाहा था तबादला
पत्र में आरोप है कि 2022 में उच्च स्तर पर शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जुलाई, 2023 में उच्च न्यायालय की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की। समिति कैसे गवाहों से उच्चाधिकारी के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह समझ से परे है। केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान आरोपित जज का तबादला कर दिया जाए।
मेरी रिट याचिका सुनवाई और मेरी प्रार्थनाओं पर विचार किए बिना आठ सेकंड में खारिज कर दी गई। मुझे लगा जैसे मेरा जीवन, मेरी गरिमा और मेरी आत्मा खारिज कर दी गई है। यह एक व्यक्तिगत अपमान की तरह महसूस हुआ। अब जांच जज और सभी गवाहों की अध्यक्षता में की जाएगी। हम सभी जानते हैं कि इस जांच का क्या हश्र होगा।