54 करोड़ के जमीन घोटाले में DM पूर्व MNA और SDM समेत 12 सस्पेंड

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देहरादून। हरिद्वार में हुए जमीन घोटाले में सरकार ने 2 IAS और 1 PCS अधिकारी समेत कुल 12 लोग सस्पेंड कर दिए हैं। इस मामले में डीएम, एसडीएम और पूर्व नगर आयुक्त पर भी गाज गिरी है, अब इस मामले की विजिलेंस करेगी। 54 करोड़ के जमीन घोटाले में सरकार ने बड़े अफसर सस्पेंड कर उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी है।

हरिद्वार नगर निगम द्वारा कूड़े के ढेर के पास स्थित अनुपयुक्त और सस्ती कृषि भूमि को 54 करोड़ रुपये में खरीदने के मामले ने राज्यभर में हलचल मचा दी थी। न तो भूमि की वास्तविक आवश्यकता थी, न ही इसको खरीदते वक्त पारदर्शी बोली प्रक्रिया अपनाई गई। शासन के स्पष्ट नियमों को दरकिनार कर एक ऐसा सौदा किया गया जो हर स्तर पर संदेहास्पद था। लेकिन इस बार मामला रफा-दफा नहीं हुआ। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरे प्रकरण की जांच कराई और रिपोर्ट मिलते ही तीन बड़े अफसरों के खिलाफ सस्पेंड करने की कार्रवाई कर दी।

इन अधिकारियों पर हुई कार्रवाई

कर्मेन्द्र सिंह, जिलाधिकारी डीएम हरिद्वार:
भूमि क्रय की अनुमति देने और प्रशासनिक स्वीकृति देने में उनकी भूमिका संदेहास्पद पाई गई।

वरुण चौधरी पूर्व नगर आयुक्त हरिद्वार:

उन्होंने बिना उचित प्रक्रिया के भूमि क्रय प्रस्ताव पारित किया और वित्तीय अनियमितताओं में प्रमुख भूमिका निभाई।

अजयवीर सिंह, एसडीएम: जमीन के निरीक्षण और सत्यापन की प्रक्रिया में घोर लापरवाही बरती गई, जिससे गलत रिपोर्ट शासन तक पहुंची।

तीनों अधिकारियों को किया सस्पेंड
इन तीनों अधिकारियों को वर्तमान पद से हटाया गया है और शासन स्तर पर आगे की विभागीय और दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई है। इसके साथ ही निकिता बिष्ट (वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम हरिद्वार), विक्की (वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक), राजेश कुमार (रजिस्ट्रार कानूनगों), कमलदास (मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार को भी जमीन घोटाले में संदिग्ध पाए जाने पर तुरंत प्रभाव से निलंबित किया है।

जांच में इन तक भी पहुंची आंच

जांच अधिकारी नामित करने के बाद इस घोटाले में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट व अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर निलंबित कर दिया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार भी समाप्त कर दिया गया था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें सेवा विस्तार दिया गया था। उनके खिलाफ सिविल सर्विसेज रेगुलेशन के अनुच्छेद 351(ए) के प्रावधानों के तहत अनुशासनिक कार्रवाई के लिए नगर आयुक्त को निर्देश दिए गए थे। अब इस पूरे मामले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है।

देहरादून। हरिद्वार नगर निगम के करोड़ों के जमीन घोटाले की हाई प्रोफाइल जांच पूरी हो गयी है। आईएएस रणवीर सिंह चौहान ने गुरुवार को जांच रिपोर्ट सौंप दी। अब देखना यह है कि वित्तीय अनियमितताओं, प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार के त्रिकोण के इस घोटाले के दोषियों के खिलाफ सरकार क्या एक्शन लेती है ?

शहरी विकास सचिव नितेश झा को सौंपी गयी रिपोर्ट में तीन बड़े अधिकारियों को प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है। जांच में यह साफ हो गया कि लगभग 35 बीघा भूमि के लैंड यूज व खरीद में तय नियमों व शर्तों का पालन नहीं किया गया।

जांच रिपोर्ट में हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी व एसडीएम अजयवीर सिंह को दोषी करार दिया गया है। जांच रिपोर्ट में दोषी अधिकारियों के खिलाफ यथोचित एक्शन लेने की बात कही गयी है।मौजूदा समय में आईएएस वरुण चौधरी सचिवालय में अपर सचिव स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

जांच में यह भी सामने आया कि हरिद्वार नगर निगम ने कुछ करोड़ की कृषि भूमि का लैंड यूज 20 दिन के अंदर चेंज कर दिया। कूड़े के ढेर के समीप स्थित इस कृषि भूमि का कामर्शियल भू उपयोग में तब्दील होने पर जमीन की कीमत के दाम उछलकर 55 करोड़ रुपए तक पहुंच गए। इसके बाद अधिकारियों की मिलीभगत के बाद यह जमीन ऊंचे दामों पर खरीद ली गयी। जांच रिपोर्ट में जमीन खरीद के औचित्य पर गहरे सवाल उठाए गए हैं। इसके अलावा भू उपयोग परिवर्तन से सरकारी खजाने में लगी करोड़ों की चपत को भी गम्भीर प्रशासनिक लापरवाही मुद्दा माना गया।

गुरुवार को सौंपी गई रिपोर्ट के बाद अब गेंद शासन के पाले में है। इन तीनों अधिकारियों के खिलाफ सम्बंधित कार्मिक विभाग ही कोई एक्शन लेगा। इससे पूर्व जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह चौहान ने हरिद्वार डीएम कर्मेन्द्र सिंह व पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी के बयान दर्ज किये थे। और हरिद्वार जाकर अभिलेखों की जांच व मौका मुआयना किया था।

नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों की बंदरबांट के इस हैरतअंगेज कारनामे में तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह के स्टेनो और डाटा एंट्री ऑपरेटर से भी पूछताछ की गई। इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच को लेकर पूरे प्रदेश में हलचल देखी जा रही है। गौरतलब है कि पूर्व में हुए NH घोटाले में कई अधिकारी गिरफ्तार हुए थे। लेकिन बड़े अधिकारियों को क्लीन चिट मिलने पर कई सवाल उठे थे।

पूर्व में यह कार्रवाई हुई
गौरतलब है कि 1 मई को
हरिद्वार नगर निगम द्वारा बाजार भाव से अधिक दर पर भूमि खरीदे जाने के प्रकरण में प्रथमद्रष्टया दोषी पाए गए चार अधिकारियों को निलंबित किया गया था जबकि एक अन्य अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया है ।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर नगर निगम हरिद्वार द्वारा सराय गांव में भूमि खरीद मामले में यह सख्त कार्रवाई की गई थी।इसके अलावा, मामले में एक कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए थे।

जांच में पाया गया कि उक्त भूमि की खरीद के लिए गठित समिति के सदस्य के रूप में हरिद्वार नगर निगम के अधिशासी अधिकारी श्रेणी-2 (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त) रवीन्द्र कुमार दयाल, सहायक अभियन्ता (प्रभारी अधिशासी अभियन्ता) आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भटट और अवर अभियंता दिनेश चन्द्र काण्डपाल ने अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया। इस आरोप में सभी अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। प्रकरण में सेवा विस्तार पर कार्यरत सेवानिवृत्त सम्पत्ति लिपिक वेदपाल की भी संलिप्तता पायी गयी जिसके बाद सेवा विस्तार समाप्त करते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही हरिद्वार नगर निगम की वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है।

कौन है मास्टरमाइंड
हरिद्वार नगर निगम की
बिना किसी ठोस परियोजना के कूड़े के ढेर के बगल वाली 33 बीघा भूमि खरीद की फ़ाइल का तेजी से दौड़ना भी कई सवाल खड़े कर गया। इतनी जल्दी कृषि भूमि का लैंड यूज चेंज कर चार गुना अधिक मूल्य पर जमीन की खरीद में पीछे किस मास्टरमाइंड का हाथ था, यह भी कौतूहल का विषय बना हुआ है।

यह था मामला
गौरतलब है कि नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2024 में आईएएस वरुण चौधरी को नगर निगम का प्रशासक तैनात किया गया था। भूमि खरीद में नगर निगम एक्ट का पालन किया जाना था। जमीन खरीद से जुड़े शासन के नियम व निर्देश भी अपनी जगह मौजूद थे। बावजूद इसके एक कॄषि योग्य भूमि का लैंड यूज परिवर्तित कर कामर्शियल कर दिया। और सिर्फ कुछ करोड़ की जमीन 50 करोड़ रुपए से अधिक दाम में खरीद ली गयी। इस मामले में हवा के माफिक दौड़ी फाइल का पेट भी नियमबद्ध दस्तावेजों से नहीं भरा गया।

निकाय विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि
नगर निगम ने किस परियोजना या योजना के लिए कूड़े के ढेर के बगल वाली जमीन खरीदी। जमीन खरीद का क्या प्रयोजन था? यह भी साफ नहीं किया गया। चूंकि, कामर्शियल रेट पर करोड़ों की खरीदी गई जमीन पर निगम की कोई फ्लैट बनाने की योजना थी? या फिर मॉल आदि कोई अन्य कामर्शियल गतिविधि को अंजाम देना था ? यह भी सार्वजनिक नहीं किया गया। अलबत्ता गोदाम बनाने की बात अवश्य कही गयी।

हरिद्वार नगर निगम भूमि घोटाले में एक बात यह भी सामने आ रही है कि सम्बंधित जिम्मेदार अधिकारियों ने भूमि खरीद की तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। नगर निगम भूमि खरीद घोटाले में 1 मई को चार अधिकारियों के निलंबन के बाद जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह ने हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह व पूर्व नगर प्रशासक हरिद्वार वरुण चौधरी से पूछताछ की थी।

गौरतलब है कि हरिद्वार से जुड़े अधिकारियों ने यह कारनामा नगर निगम भंग होने के समय अंजाम दिया था। बाद में हरिद्वार की मेयर निर्वाचित होने पर किरण जैसल ने इस भूमि खरीद घोटाले की शिकायत सीएम धामी से की। सीएम धामी ने जांच आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह को सौंपी।

ऐसे हुई 15 से 54 करोड़ रुपए कीमत
भूमि का लैंड यूज कृषि था। तब उसका सर्किल रेट छह हजार रुपये के आस पास था। यदि भूमि को कृषि भूमि के तौर पर खरीदा जाता, तब उसकी कुल कीमत पंद्रह करोड़ के आस पास होती। लेकिन लैंड यूज चेंज कर खेले गए खेल के बाद भूमि की कीमत 54 करोड़ के आस पास हो गई। खास बात ये है कि अक्टूबर में एसडीएम अजयवीर सिंह ने लैंड यूज बदला और चंद दिनों में ही निगम निगम हरिद्वार ने एग्रीमेंट कर दिया और नवंबर में रजिस्ट्री कर दी।

नगर निगम हरिद्वार ने नवंबर 2024 में सराय कूड़ा निस्तारण केंद्र से सटी 33 बीघा भूमि का क्रय किया था। ये भूमि 54 करोड़ रुपए में खरीदी थी जबकि छह करोड़ रुपए स्टाप ड्यूटी के तौर पर सरकारी खजाने में जमा हुए थे। 2024 में तब नगर प्रशासक आईएएस वरुण चौधरी थे। जमीन खरीद मामले में मेयर किरण जैसल ने सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच सीनियर आईएएस अफसर रणवीर सिंह को सौंपी थी। अब इस मामले में जमीन को बेचने वाले किसान के खातों को फ्रीज करने के आदेश कर दिए गए हैं।

लैंड यूज में खेल
अक्टूबर 2024 में एसडीएम अजयवीर सिंह ने जमीन का लैंड यूज बदला और चंद दिनों में ही नगर निगम ने खरीद का एग्रीमेंट कर लिया। नवंबर में रजिस्ट्री पूरी हो गई। इस तेजी से भी कई सवाल खड़े हुए।

पारदर्शिता का अभाव
जमीन खरीद के लिए कोई पारदर्शी बोली प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, जो सरकारी खरीद नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। साथ ही, नगर निगम ने इस खरीद के लिए शासन से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली। सशर्त अनुमति का दुरुपयोग जमीन को गोदाम बनाने के लिए धारा 143 के तहत सशर्त अनुमति दी गई थी, जिसमें शर्त थी कि यदि भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन से अलग किया गया, तो अनुमति स्वतः निरस्त हो जाएगी। आरोप है कि इस जमीन का उपयोग कूड़ा डंपिंग के लिए किया गया, जो अनुमति का उल्लंघन हो सकता है।

घोटाले में पूर्व नगर प्रशासक (एमएनए) वरुण चौधरी पर सर्किल रेट का दुरुपयोग कर सौदा करने का आरोप है। जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह और नगर निगम आयुक्त भी जांच के घेरे में हैं।

इस तरह के बड़े सौदों में तहसील और नगर निगम की संयुक्त जांच अनिवार्य होती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यह प्रशासनिक लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। साथ ही, सर्किल रेट और लैंड यूज में बदलाव की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव रहा।