क्या होते है ग्लेशियर? कैसे होते हैं और क्यों टूटते हैं?

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देहरादून। रविवार को जोशीमठ में ग्लेशियर टूटने से कई लोगों की जान चली गई। गनीमत यह रही कि बारिश नही हुई। सरकारी तंत्र की फुर्ती और सरकार की कड़ी निगरानी के चलते बड़ी तबाही से बचाव हो गया। हालांकि 20 लोग असमय ही काल का शिकार हो गए औरलगभग 150 लोग लापता हैं। इस सबके बीच कई के दिलों दिमाग मे कई सवालों ने घर बना लिया है. मसलन ग्लेशियर क्या होते हैं? कैसे होते हैं, क्यों टूट जाते हैं, कितने हैं और कहां कहां हैं? इन्हीं सवालों का जवाब आपके बीच है।

उत्तराखंड से निकलने वाली प्रमुख नदियों में भागीरथी, अलकनंदा, विष्णुगंगा, भ्युंदर, पिंडर, धौलीगंगा, अमृत गंगा, दूधगंगा, मंदाकिनी, बिंदाल, यमुना, टोंस, सोंग, काली, गोला, रामगंगा, कोसी, जाह्नवी, नंदाकिनी प्रमुख हैं। रविवार की घटना धौलीगंगा नदीं में हुई है। धौलीगंगा नदी अलकनंदा की सहायक नदी है। गढ़वाल और तिब्बत के बीच यह नदी नीति दर्रे से निकलती है। इसमें कई छोटी नदियां मिलती हैं जैसे कि पर्ला, कामत, जैंती, अमृतगंगा और गिर्थी नदियां। धौलीगंगा नदी पिथौरागढ़ में काली नदी की सहायक नदी है।

ग्लेशियर को हिंदी में हिमनद कहते हैं, यानी बर्फ की नदी जिसका पानी ठंड के कारण जम जाता है। हिमनद में बहाव नहीं होता। अमूमन हिमनद जब टूटते हैं तो स्थिति काफी विकराल होती है क्योंकि बर्फ पिघलकर पानी बनता है और उस क्षेत्र की नदियों में समाता है। इससे नदी का जलस्तर अचानक काफी ज्यादा बढ़ जाता है। चूंकि पहाड़ी क्षेत्र होता है इसलिए पानी का बहाव भी काफी तेज होता है ऐसी स्थिति तबाही लाती है।

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