पांच राज्यों में शर्मनाक हार: अपनी इस दुर्गति के लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार

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नई दिल्ली। पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे देश को सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए घोर निराशाजनक साबित हुए हैं, किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन देश की सबसे पुरानी यह पार्टी सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे दो राज्यों तक सिमट जाएगी। अधिकांश समय पूरे भारत पर राज करने वाली कांग्रेस आज मुख्य विपक्षी दल बने रहने के लिए भी संघर्ष कर रही है। कांग्रेस की यह स्थिति खुद उसके कारण है विगत कुछ वर्षों में कांग्रेस विरोधाभास का पर्याय बनकर रह गई है उसके सारे फैसले नेहरू-गांधी परिवार लेता हुआ नजर आता है इसका शीर्ष नेतृत्व या कहें हाईकमान राज्यों के नेताओं के पारस्परिक विवादों को सुलझाने में ही लगा रहता है इसके बाद भी वह बड़े नेताओं के झगड़े सुलझा नहीं पा रहा है

पंजाब गोवा और उत्तराखंड में इस बार कांग्रेस की जीत की अच्छी संभावनाएं दिख रही थीं हालांकि पंजाब में नवजोत सिद्धू एवं अमरिंदर सिंह, फिर बाद में चरणजीत सिंह चन्नी और उत्तराखंड में हरीश रावत एवं प्रीतम सिंह के आपसी कलह ने उसे परिदृश्य से बाहर कर दिया; इसी तरह कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं का एक समूह पनप चुका है जिसे संभालना पार्टी के लिए लगातार कठिन होता जा रहा है दिक्कत की बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व दशकों से इन्हीं नेताओं पर आश्रित रहा है आज स्थिति यह है कि इन नेताओं के असहयोग के कारण कांग्रेस हर जगह असमर्थ दिखती है कांग्रेस को चाहिए कि भाजपा की तरह वह नेताओं की नई पौध को लगातार विकसित करती रहे

कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि फिलहाल उसके पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, इसके कारण कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आम जनता को एक नेतृत्वविहीन दल के रूप में पहचानने लगी है कांग्रेस को चाहिए कि वह एक पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त करे भले ही यह पारंपरिक रूप से नेहरू गांधी परिवार का ही क्यों न हो पूर्णकालिक अध्यक्ष की सक्रियता कांग्रेस में स्फूर्ति का संचार करेगी वह जनता के सामने एक जागृत और जिम्मेदार दल के रूप में दिखाई देगी, पूर्णकालिक अध्यक्ष के अभाव में पार्टी का बिखरना लगातार जारी रहेगा

समय के साथ इसकी गति भी बढ़ती जाएगी कांग्रेस समय के साथ अपने आप को नई राजनीति में भी नहीं ढाल पा रही है अपनी नीतियों को जनता की नहीं समझा पा रही है हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, तमाम आईआईएम – आईआईटी आदि की सूत्रधार होकर भी कांग्रेस की छवि एक सुस्त दल की बनी हुई है बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पलायन जैसी चीजों को आज भी कांग्रेस की देन माना जाता है जबकि वास्तविकता यह है कि यह लगभग हर सरकार में रही है।

कांग्रेस के साथ एक और समस्या यह अपनी छवि नहीं बदल पा रही है वह खुद के प्रति जनता की मानसिकता को बदलने में अक्षम दिख खुद के प्रति रही है, इसके लिए कांग्रेस को जमीन से जुड़े नेताओं को स्थान देना चाहिए; वर्तमान नेतृत्व को समझना चाहिए कि नए नेता पार्टी में नई ऊर्जा लेकर आएंगे यह समय मिलकर काम करने का है उत्तरदायित्व के बंटवारे का है जनता की मानसिकता को बदलने का है कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी की भी छवि एक अगंभीर एक नासमझ व्यक्ति के रूप में बन गई है

यही वजह है कि कई बार मोदी की उसी गलती को लोग सामान्य मानवीय भूल मान लेते हैं, जबकि राहुल गांधी की गलती को उनकी मेधा से जोड़कर देखते हैं; कांग्रेस को चाहिए कि अपने नेता की छवि को भी दुरुस्त करे जिस तरह से भाजपा अपने नेता की छवि को हर समय अपडेट करती रहती है उसी तरह कांग्रेस को भी अपने नेता की छवि को मजबूत करना होगा; इसके लिए उन्हें सत्ताधारी दल से लड़ने के बजाय अपने नए लक्ष्यों को तलाशना होगा।

इस समय भारतीय राजनीति में सबसे ऊंचा स्थान रखने वाले दल भाजपा और काफी तेजी से उभर रहे दल आम आदमी पार्टी यानि केजरीवाल की Aap के पास विजिटिंग कार्ड के रूप में अपना-अपना एक विकास का माडल है, भाजपा के पास गुजरात मॉडल है तो केजरीवाल के पास दिल्ली मॉडल कांग्रेस को भी अपने लिए एक ऐसा विकास मॉडल तैयार करना होगा जो उसकी नई राजनीतिक पारी के लिए नया विजिटिंग कार्ड साबित हो सके क्योंकि बदलती भारतीय राजनीतिक स्थितियों में अब कांग्रेस के पास उदाहरण के लिए बहुत कुछ नहीं है

विरासत एक समय के बाद वोट में तब्दील नहीं होती आज की पीढ़ी के समक्ष उसे नया उदाहरण प्रस्तुत करना ही होगा तभी वह भाजपा और आम आदमी पार्टी का मुकाबला कर पाएगी कांग्रेस के पास अभी भी दो राज्य-राजस्थान और छत्तीसगढ़ बचे हैं जहां उसकी सरकार है पूरे भारत के वोट शेयर की बात करें तो कांग्रेस के पास अभी भी 21 प्रतिशत वोट शेयर है कहने का अर्थ यह है कि कांग्रेस के पास अपने विकास मॉडल को विकसित करने के लिए अभी भी अवसर है।

कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि वह केवल नरेन्द्र मोदी की आलोचना करके आगे नहीं बढ़ सकती उसे आगे बढ़ने के लिए नई राजनीतिक यात्रा आरंभ करनी होगी भारतीय राजनीति में कुछ नया लाना होगा नए मानक स्थापित करने होंगे और नए मूल्यों से सबका परिचय कराना होगा