प्रदेश में प्रमुख वन संरक्षक समेत 34 आईएफएस अधिकारियों के तबादले

330

देहरादून। उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क में बेतहाशा अवैध निर्माण का मामला दिल्ली हाईकोर्ट से शुरू होकर जब नैनीताल हाईकोर्ट में पहुंचा तो विभागीय अधिकारी सरकार के गले की फांस बन गए।

उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क में बेतहाशा अवैध निर्माण का मामला दिल्ली हाईकोर्ट से शुरू होकर जब नैनीताल हाईकोर्ट में पहुंचा तो विभागीय अधिकारी सरकार के गले की फांस बन गए। ऐसे में उत्तराखंड में वन विभाग में भारी संख्या में तबादले कर दिए गए। इनमें प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी सहित कुल 34 अधिकारियों के तबादले कर दिए गए हैं। उत्तराखंड के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि जब किसी प्रमुख वन संरक्षक को अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटाकर दूसरी जगह भेज दिया गया। यही नहीं निर्माण के मामले में आरोपी उप वन संरक्षक किशन चंद को वर्तमान तैनाती प्रभागीय वनाधिकारी कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभार लैंसडौन से प्रभार से अवमुक्त करते हुए प्रमुख वन संरक्षक देहरादून के कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया। शासन की ओर से सभी 34 आइएफएस के तबादला आदेश सचिव विजय कुमार की ओर से जारी किए गए हैं।

गौरतलब है कि कार्बेट नेशनल पार्क में बेहताशा निर्माण कार्यों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से एक टीम बनाई गई और जांच कराई गई। जांच में अवैध निर्माण की पुष्टि हुई तो इसकी रिपोर्ट एक नेशनल समाचार पत्र में प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट को नैनीताल हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी को तलब किया। हाईकोर्ट ने पूछा कि उन्होंने इस मामले में क्या कार्रवाई की है। अब तक कितनी जांच हुई। वहीं, इस मामले में वन विभाग जांच में हालीहवाली करता रहा। कोई भी अधिकारी जांच के लिए तैयार नहीं हुआ। अब इस मामले में 8 दिसंबर को हाईकोर्ट नैनीताल में सुनवाई होनी है। इससे पहले ही सरकार ने 34 अधिकारियों के कार्यक्षेत्र बदल दिए।

नैनीताल हाईकोर्ट में अगली सुनवाई आठ दिसंबर को
उत्तराखंड हाइकोर्ट ने कोर्बेट नेशनल पार्क में अवैध रूप से किए जा रहे निर्माण कार्यो, सड़को व पुलों के सम्बंध में अखबारों में 24 अक्टूबर को छपी खबर का स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की थी। मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने मामले को सुनने के बाद राज्य सरकार व केंद्र सरकार से 8 नवम्बर तक जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी बताने को कहा है कि पार्क के कौन कौन सी जगहों पर अवैध निर्माण किया गया है। मामले को सुनने के बाद अगली सुनवाई के लिए 8 नवम्बर की तिथि नियत की है। सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में हुई थी।

ये था मामला
मामले के अनुसार दिल्ली हाइकोर्ट के अधिवक्ता गौरब कुमार बंसल ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि कोर्बेट नेशनल पार्क के मोरघट्टी व पोखरो फारेस्ट रेस्ट हाउस (एफआरएच) के आस पास अवैध निर्माण कार्य किए जा रहे है। जिन्हें हटाया जाए। निर्माण कार्य बंद करने से बाघों व अन्य जंगली जानवरों को बचाया जा सके। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने एनटीसीए को निर्देश दिए थे कि वे याचिकर्ता के प्रत्यावेदन को निस्तारित करें। एनटीसीए ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए अवैध निर्माणों कार्यो को जांच हेतु एक कमेटी गठित की।

कमेटी ने किया था दौरा
बीते 24 अक्टूबर को इस कमेटी ने कोर्बेट पार्क का दौरा किया। कमेटी ने जाँच में पाया कि नेशनल पार्क के मोरघट्टी व एफराएच परिसर के कई क्षेत्रों में अवैध निर्माण कार्य चल रहे है जिनमे होटल, भवन,पुल व रोड आदि सामील है।कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में चीफ वाइल्ड लाईफ वॉर्डन को निर्देश दिए कि इन क्षेत्रों से शीघ्र अवैध निर्माणों को हटाया जाए। जिन अधिकारियों की अनुमति से ये निर्माण कार्य किये गए है उनके खिलाफ कार्यवाही की जाय। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख भी किया है कि वन विभाग के अधिकारियो ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 ,इंडियन फारेस्ट एक्ट 1927 व फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 का उल्लंघन किया गया है।

एनटीसीए ने कहा था जांच को, हाईकोर्ट ने लिया था स्वतः संज्ञान
एनटीसीए ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख भी किया है कि उन्होंने इससे 12 अगस्त 2021 को चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन को पत्र भेजकर कहा था कि इस मामले की जाँच करें, परन्तु उनके इस पत्र पर कोई कार्यवाही नही हुई। कोई कार्यवाही नही होने पर एनटीसीए ने जाँच हेतु 24 अक्टूबर 2021 को एक कमेटी यहाँ भेजी। कोर्ट ने पेपर में छपी खबर का स्वतः सज्ञान लेकर केंद्र सरकार, मुख्य सचिव उत्तराखंड वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार, उत्तराखंड वाइल्ड लाइफ एडवाजरी बोर्ड,पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ वॉर्डन और सम्बन्धित क्षेत्र के डीएफओ को पक्षकार बनाया है।