देहरादून। भराड़ीसैण में विधानसभा सत्र के आखिरी दिन निकायों में OBC विधेयक पारित करते समय एक अजीबोगरीब स्थिति हो गई। उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 को संशोधित करते समय सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों की मांग पर ही इसे प्रवर समिति को भेजना पड़ा।
जब स्पीकर ने इस विधेयक को पास करने के लिए सदन से हां-ना में जवाब मांगा तो सत्तारूढ़ पार्टी की विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने इस विधेयक में आरक्षण से संबंधित तकनीकी दिक्कतों को गिनाते हुए, इसे प्रवर समिति को सौपने की मांग कर डाली। जब चौहान ने यह मांग की उसे समय समूचा विपक्ष बहिर्गमन कर चुका था। दिलचस्प बात यह है कि विपक्ष ने जिन दो विधेयकों को प्रवर समिति को सौपने की मांग की थी, उनमें यह विधेयक शामिल नहीं था। भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने ओबीसी आरक्षण को लेकर के तमाम ऐसी तकनीकी खामियां गिनाई दी, जो एकदम व्यावहारिक थी। चौहान के प्रस्ताव को प्रीतम सिंह पंवार, दुर्गेश्वर लाल वह विनोद चमोली ने भी समर्थन दिया। इस पर संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को समिति को सौपने के लिए प्रस्ताव रखना पड़ा। इसके बाद पीठ को इस विधयक को प्रवर समिति को सौपने की घोषणा करनी पड़ी। प्रवर समिति का चयन करने का अधिकार स्पीकर को दिया गया है। उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में बैकवर्ड क्लास को 14 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी, नहीं थी। चौहान ने तर्क दिया की बहुत सारी ऐसी जातियां है जो दूसरे राज्यों में तो बैकवर्ड है, लेकिन उत्तराखंड में सामान्य की श्रेणी में है। उन्होंने कई राज्यों के उदाहरण देते हुए इसे बड़ी खामी बताया और कहा कि कानून बनाने से पहले इसकी हर तरह की शंका को दूर करना हम सबका दायित्व है इसलिए इस विधेयक को गंभीर विचार के लिए प्रवर समिति को सौपा जाना आवश्यक है। चौहान ने साफ कहा कि राज्य की मौलिकता जिंदा रखने के लिए विधायक के पर ठोस काम किए जाने की जरूरत है कहीं ऐसा ना हो कि जल्दबाजी में पास करके हम राज्य के हितों को ही अनदेखा नगर बैठें। सत्तारूढ़ पार्टी के अन्य सदस्यों ने भी उनके बात पर सहमति जताई और इसको प्रवर समिति को सौपने का सुझाव रखा।

