पाखरो प्रकरण-आखिर किसने डिलीट की PCCF कार्यालय से जरूर ईमेल

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देहरादून। पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण में एक अहम तथ्य सामने आया है। जो पूरी जांच की दिशा बदल सकता है। पूर्व पीसीसीएफ वन पंचायत की ओर से की गई जांच में ये सामने आया है कि कार्बेट निदेशक ने इस मामले की शिकायत और सूचना के लिए जो भी ई मेल पीसीसीएफ उत्तराखंड की अधिकारिक मेल आईडी पर भेजी गई थी वो उसमें से डिलीट कर दी गई थी। इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने पूर्व पीसीसीएफ की जांच रिपोर्ट भी ले ली है, जिसमें ये तथ्य जांच में अहम हो सकता है।
पूर्व पीसीसीएफ वन पंचायत ज्योत्सना सिथलिंग ने इस मामले की जांच की थी। जिसमें ये सामने आया कि तत्कालीन कार्बेट निदेशक राहुल की ओर से 19 जुलाई 2021 से 21 अक्टूबर के बीच तत्कालीन पीसीसीएफ, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन और डीएफओ कालागढ़ को आठ पत्र भेजे गए। जिन सभी की कापियां ईमेल से पीसीसीएफ कार्यालय को भी भेजी गई। लेकिन जांच अधिकारी ने जब पीसीसीएफ की अधिकारिक मेल की जांच की तो उसके इनबॉक्स में 20 जुलाई से 21 अक्टूबर 2021 तक कोई भी मेल नहीं मिली। जबकि जांच में मेले भेजे जाने की पुष्टि हुई। इस मामले में जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इस समय के बीच की सारी मेल इनबॉक्स से डिलीट की गई। ऐसे में अब सीबीआई इस मामले की जांच को तेज करते हुए ये पता लगा सकती है कि मेल डिलीट क्यों की गई। सीबीआई इन मेलों को रिकवर भी कर सकती है। जिनमें निदेशक की ओर से खुद पाखरो में उनकी जानकारी के बिना निर्माण की बात लिखकर उच्चाधिकारियों से कार्रवाई की मांग की गई थी।
इस मामले में तत्कालीन वन मंत्री डा. हरक सिंह सहित कई अफसर सीबीआई व ईडी की जांच के घेरे में हैं। दोनेां एजेंसियां जल्द इस मामले की जांच पूरी कर सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दे सकती हैं।

अनसुलझे सवाल
15 मार्च 2022 को तत्कालीन एपीसीसीएफ प्रशासन ने पीसीसीएफ कार्यालय को पांच पत्रों के बारे में स्पष्ट रूप से मिलने की बात स्वीकारी , फिर मार्च 2023 की जांच में ईमेल डिलीट कैसे मिले।
26 अगस्त 2021 को तत्कालीन मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक ने स्वयं क्षेत्र का निरीक्षण किया परंतु डीएफ़ओ को कोई निर्देश क्यों नहीं दिए।
19 जुलाई 2021 के पत्र में साफ लिखा गया था कि अवैध निर्माण हो रहा है, लेकिन इस पर मुख्यालय ने कार्रवाई क्यों नहीं की।
⁠यदि सीजेडए के कोई अनुमति प्राप्त होनी थी तो इस पर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक की ओर से कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
जब वन मुख्यालय को इस मामले में कार्रवाई का पूरा अधिकार था तो शासन को क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

करनी थी चार्जशीट की जांच, मैडम ने कर डाली इन्वेस्टिगेशन
इस मामले में पूर्व पीसीसीएफ वन पंचायत रहीं आईएफएस ज्योत्सना सिथलिंग को केवल तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग को मिली चार्जशीट की जांच करने के लिए जांच अधिकारी शासन ने नामित किया गया था। जबकि उन्होंने चार्जशीट की तो जांच नहीं की, बल्कि इस प्रकरण की इन्वेस्टिगेशन करके 12 सौ पेज की जांच रिपोर्ट तैयार कर शासन को दे दी। लेकिन कानूनी तौर पर उसका कोई महत्व नहीं है। क्योंकि उन्हें केवल चार्जशीट में लगे आरोपों के सही या गलत होने की पुष्टि की जांच कर रिपोर्ट देनी थी।