देहरादून। विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने जोर शोर से एक नारा दिया है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ जिसके तहत प्रियंका गांधी के नारे पर अमल करते हुए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 40 फ़ीसदी महिला प्रत्याशियों को टिकट देकर महिलाओं को अपने साथ जोड़ने का बडा प्रयास किया है। वहीं उत्तराखंड में कांग्रेस ने इस नारे को कोई तवज्जो नहीं दी है। भाजपा ने 59 प्रत्याशियों की अपनी पहली सूची में 6 महिलाओं को टिकट दिया है। वहीं कांग्रेस ने भाजपा से भी अधिक कंजूसी बरतते हुए 53 सीटों पर मात्र 3 महिलाओं को टिकट दिया है।
यदि कांग्रेस चाहे तो देहरादून जिले की लंबित पंजाबी बहुल कैंट विधानसभा के साथ ही डोईवाला विधानसभा में महिला प्रत्याशी उतारकर इस आंकड़े को बढ़ा सकती है। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के पास टिकट के लिए मजबूत महिला दावेदार भी मौजूद हैं। डोईवाला विधानसभा में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय पूर्व जिला पंचायत सदस्य महिला कांग्रेस सेवादल की प्रदेश अध्यक्ष हेमा पुरोहित के रूप में कांग्रेस के पास एक बड़ा एवं मजबूत चेहरा मौजूद है। जो कि कांग्रेस के लिए जिताऊ प्रत्याशी साबित हो सकती हैं।
वही कैंट विधानसभा में भी कांग्रेस के पास कोमल बोहरा के रूप में एक बड़ा लोकप्रिय एवं युवा चेहरा मौजूद है। कोमल बोहरा कैंट विधानसभा के ही बल्लूपुर वार्ड से इस समय नगर निगम की पार्षद हैं। साथ ही वह उत्तरांचल पंजाबी महासभा में महिला विंग की महानगर अध्यक्ष भी हैं। उनके साथ समाज सेवा के कार्यों में पंजाबी समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका लगातार सक्रिय रहता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या कांग्रेस इन सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारकर ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ के नारे को मजबूती देने का काम करेगी या फिर पहली सूची की तरह बाकी 17 प्रत्याशियों की सूची में भी महिला प्रत्याशियों की अनदेखी कर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के इस नारे की हवा निकालने का काम करेगी।
उत्तराखंड में कांग्रेस ने इस नारे की पूरी तरह से हवा निकालते हुए यहां मात्र 6 फ़ीसदी टिकट यानी 3 महिलाओं को ही प्रत्याशी बनाया है। वहीं भाजपा ने 59 प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में 6 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। उत्तराखंड में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की आबादी लगभग 50 लाख है जबकि पुरुषों की संख्या 52 लाख के लगभग है। महिलाओं को टिकट देने के मामले में उत्तराखंड में दोनों ही राष्ट्रीय दलों ने पूरी तरीके से अनदेखी की है।