रिस्पना किनारे की बस्तियों पर ध्वस्तीकरण की तलवार! 13 फ़रवरी को मांगी कार्यवाही की रिपोर्ट

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अस्तित्व टाइम्स

एनजीटी ने कहा-विधानसभा से पारित कानून पर्यावरण संरक्षण अधिनियम पर लागू नहीं

देहरादून। राज्य सरकार को एनजीटी ने रिस्पना नदी के फ्लड जोन में बसी बस्तियों के मकान ध्वस्त करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कहा है कि, उत्तराखंड विधानसभा से पारित अतिक्रमण हटाने पर रोक से जुड़ा कानून भी पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत लागू नहीं होगा। फ्लड जोन में किसी भी तरह का स्थाई निर्माण नहीं किया जा सकता। इसलिए रिस्पना नदी किनारे बसी सभी बस्तियों को ध्वस्त किया जाना चाहिए। अब एनजीटी के इस आदेश से रिस्पना के फ्लड जोन में बसे परिवारों पर दोबारा ध्वस्तीकरण की तलवार लटक गई है।

इसी साल एनजीटी के आदेश पर नगर निगम और एमडीडीए ने रिस्पना किनारे स्थित 27 बस्तियों में नदी किनारे करीब 525 निर्माण चिन्हित किए थे। इनमें से 89 मकान नगर निगम, 12 नगर पालिका मसूरी, 415 एमडीडीए की भूमि, नौ अवैध मकान राज्य सरकार की जमीन पर चिन्हित किए गए थे। दून नगर निगम और एमडीडीए ने कुछ मकानों को ध्वस्त भी किया। विरोध के बाद कुछ मकानों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पाई थी। इस मामले में 16 दिसंबर को सुनवाई हुई थी, जिसके आदेश सात जनवरी को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं। इसमें साफ तौर पर बस्तियों को बचाने के लिए उत्तराखंड विधानसभा से पारित कानून को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत निष्प्रभावी करार दिया गया है। है। साथ ही 13 फरवरी को एनजीटी में सुनवाई में अतिक्रमण की स्थिति, उन पर हुई कार्रवाई के साथ ही प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए कदमों पर रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।

सरकार की ओर से यह पक्ष रखा गया था कि कुछ अवैध निर्माण चिन्हित करके नगर निगम और एमडीडीए के स्तर से कार्रवाई की गई है। लेकिन, एनजीटी ने स्पष्ट तौर पर आदेश दिया है कि अध्यादेश नदी किनारे किए गए अवैध निर्माण को सुरक्षित नहीं करता। इसलिए एक माह के भीतर अतिक्रमण हटाने के लिए सरकार विधायी और प्रशासनिक कदम उठाकर एनजीटी के सामने रिपोर्ट पेश करे। एनजीटी ने यह भी माना कि रिस्पना नदी के किनारे पूर्व में जहां अवैच निर्माण चिन्हित किया गया था, वहां पर चिन्हित सभी मकान ध्वस्त नहीं किए गए। ऐसे में फिर से फ्लड जोन में बने मकानों को चिन्हित करते हुए कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। शासन स्तर से जल्द एमडीडीए, नगर निगम एवं मसूरी पालिका को गाइडलाइन जारी हो सकती है। इस मामले में एनजीटी ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर गौर किया है, जिनमें रिस्यना नदी के बाढ़ क्षेत्र के सीमांकन, नंदी के किनारे अतिक्रमण की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई और रिस्पना नदी में सीवेज डालने से रोकना भी शामिल है। ट्रिब्यूनल ने यह भी देखा कि उत्तराखंड विधानसभा से पारित कुछ अधिनियमों में यथास्थिति को बनाए रखने के निर्देश दिए गए है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अनुसार, यह अधिनियम राज्य विधानसभा की ओर से पारित किसी भी अधिनियम के विपरीत होने पर प्रभावी रहेगा।

इनको भी रखना है पक्ष
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पेयजल निगम, जल संस्थान को रिस्पना नदी में अशुद्ध सीवेज को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट भी 13 फरवरी की एनजीटी के सामने रखनी है।

कुछ ही कब्जे हटाए गए

एनजीटी की ओर से कहा गया है कि पूर्व में जो अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई, उसके फोटोग्राफ पेश किए गए है, इनको देखकर लग रहा है कि अतिक्रमण पूरी तरह से नहीं हटाया गया है।