ज़मीन फर्जीवाड़े की जांच में लगी FR, अदालत ने खारिज कर दोबारा जांच के दिए आदेश

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जितेंद्र खरबंदा एवं अजय पुंडीर सहित 11 के विरुद्ध राजपुर थाने में विभिन्न धाराओं में दर्ज किया गया था मुकदमा

छह विवेचकों ने की मामले की जांच, अब लगा दी एफआर, अदालत ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी उठाए सवाल

देहरादून। जमीन के नाम पर करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी करने के जिस मामले में छह विवेचकों ने एक साल तक विवेचना की और बाद में अंतिम रिपोर्ट लगा दी, उसी मामले में कोर्ट ने पुलिस की अंतिम रिपोर्ट खारिज करते हुए दोबारा जांच करने के आदेश जारी किए हैं। यही नहीं, कोर्ट ने टिप्पणी भी की है कि पुलिस ने साक्ष्य व दस्तावेज विवेचना में शामिल नहीं किए और आरोपितों को लाभ पहुंचाया।

राजपुर थाने में दर्ज इस मुकदमे में पुलिस की ओर से लगाई अंतिम रिपोर्ट को चुनौती देते हुए प्रदीप नागरथ ने तृतीय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में प्रार्थनापत्र दिया। शिकायतकर्ता ने बताया कि उनकी ओर से एसएसपी को दी गई तहरीर के आधार पर आरोपित जितेंद्र खरबंदा, अजय पुंडीर, रीमा खुराना सहित 11 के खिलाफ 13 अप्रैल 2023 को मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में 10 मार्च 2024 को पुलिस ने कोर्ट में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसमें कहा गया कि मामला केवल लेनदेन से संबंधित है, जोकि एक सिविल प्रकृति का है। 29 जून 2024 को शिकायतकर्ता प्रदीप नागरथ के अधिवक्ता ने पुलिस की अंतिम रिपोर्ट को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि आरोपितों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से अंतिम रिपोर्ट प्रेषित की गई है। कहा कि आरोपित जितेंद्र खरबंदा ने पांच जुलाई 2024 को एक एमओयू मैसर्स वाला जी डेवलपर्स, दिल्ली की हैसियत से दून वैली क्लोनाइजर्स एंड बिल्डर्स के निर्देशक प्रदीप नागरथ एवं रीमा खुराना के बीच हुआ। इसमें करीब 32 बीघा जमीन पर ज्वाइंट वेंचर के माध्यम से फ्लैटों का निर्माण होना था।

पांच जुलाई 2024 को जितेंद्र खरबंदा ने बिना किसी अनुमति व बिना कंपनी के बोर्ड रेज्यूलेशन के एमओयू में मैसर्स बालाजी डेवलपर्स के निर्देशक की हैसियत से अपने हस्ताक्षर किए व प्रलोभन दिया कि वह भूमि का भूपयोग बदलवाने, ग्रुप हाउसिंग का अप्रूवल लेने व प्रोजेक्ट को बनाने की पूरी जिम्मेदारी बालाजी डेवलपर्स की होगी, जबकि जितेंद्र खरबंदा की मंशा ऐसा करने की नहीं थी। इसलिए जो धनराशि एमओयू में वर्णित की गई, वह धनराशि खरबंदा की कंपनी मैसर्स बालाजी डेवलपर्स ने दून वैली को अदा नहीं की। इसके बाद खरवंदा ने 24 अप्रैल 2016 को एक अन्य एमओयू दून वैली क्लोनाइजर्स के साथ किया और खुद को अंजनी इन्फ्रा, दिल्ली का निर्देशक दशार्या, जबकि यह कंपनी अस्तित्व में नहीं थी। खरबंदा व अजय पुंडीर ने फर्जी दस्तावेज बनाकर ग्रुप हाउसिंग की शर्तों को बदलते हुए जमीन को प्लाटिंग कर बेच दिया। इस संबंध में जो दस्तावेज विवेचकों को दिए गए, वह उन्होंने विवेचना में शामिल नहीं किए।