वरिष्ठ समाजसेवी अनुप नौटियाल भी पिछले सप्ताह पंचायत चुनाव आगे बढ़ाने की कर चुके हैं मांग
देहरादून। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों में उत्पन्न संवैधानिक संकट से पार पाने के बाद अब मानसून पंचायत चुनाव सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता हैं। गौरतलब है कि 7499 ग्राम पंचायतों 89 क्षेत्र पंचायतों और 12 जिला पंचायतों में चुनाव का कार्यक्रम फिर से जारी हो गया है। 24 जुलाई एवं 28 जुलाई को दो चरणों में मतदान होना है मतगणना 31 जिले को होगी। लेकिन जुलाई माह में राज्य के उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, चमोली, रूद्रप्रयाग, समेत कुमाऊं मंडल के भी कुछ जिले आपदा के लिहाज से अति संवेदनशील है ऐसे में मानसून सीजन सरकार की दुश्वारियां बढ़ा सकता है। कई जिलों के सरकारी अमले के सामने पंचायत चुनाव से निपटने और आपदा की दोहरी चुनौती आ खड़ी हो गई है। इसके चलते अव सरकारी अमले को दोहरी चुनौती की अगि परीक्षा से गुजरना होगा।
हाईकोर्ट द्वारा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर लगी रोक हटाने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पंचायत चुनाव का कार्यक्रम घोषित करने के चलते अब सरकारी अमला चुनावी तैयारियों में जुट गया है। मौजूदा दौर में वारिश ने जून माह में ही कहर बरपाना शुरू कर दिया है तो जुलाई माह में चुनाव के दौरान बारिश का खतरा बना रहेगा। इसके चलते गांव-गांव तक चुनाव प्रक्रिया का संपादन करना किसी चुनौती से कम नहीं है। लोक सभा तथा विधान सभा चुनाव में तो दो-तीन अथवा इससे अधिक गांवों को मिलाकर एक पोलिंग बूथ बनाया जाता है। इसके चलते निर्वाचन कर्मियों की कम जरूरत पड़ती है। पंचायत चुनाव में तो गांव-गांव पोलिंग स्टेशन बनने के कारण कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए गांव-गांव तक निर्वाचन कर्मियों का जाल बिछाना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। ऐसा नहीं है कि बरसात के दौर में पहले भी पंचायत चुनाव न हुए हों। कई बार बरसात के दौर में भी पंचायत चुनाव हुए है। फिर भी इस बार जून माह में ही जब प्रकृति कहर बरपाने लगी है तो जुलाई माह में प्रकृति का कहर और टूटने की संभावना बनी है। मौसम विज्ञानी पहले ही अनुमान जारी कर चुके है कि इस बार मानसून के दौरान पहले की अपेक्षा अधिक बारिश होगी। इसके चलते पंचायत चुनाव संपन्न कराने की रहा आसान नहीं होगी। इस तरह सरकारी अमले को पंचायत चुनाव के मोर्ने पर अगि परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ेगा। ऐसा इसलिए कि आंतरिक मार्ग बरसात में बंद हो जाएंगे। इसलिए पोलिंग सामग्री से लेकर पोलिंग पार्टियों की आवाजाही सुरक्षित करवाना और भी चुनौती पूर्ण होगा।
दरअसल आपदा की दृष्टि से तमाम जिले जोन 5 में स्थित है। इसलिए आपदा का कहर इन जनपदों में टूट पड़ेगा। खास कर चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, बागेश्वर तथा पिथौरागढ़ जनपदों में हर साल मानूसन के दौरान आपदा कहर बरपाती रही है। इस बार भी इस तरह की संभावना बनी हुई है। अब जबकि पंचायत चुनाव का शंखनाद हो गया है और जुलाई माह में ही चुनावी प्रक्रिया संपन्न होनी है तो सरकारी अमले को दोनों मोर्चे पर जूझना होगा।
चमोली तथा रुद्रप्रयाग जनपदों में बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी, केदारनाथ जैसे तीर्थ और पर्यटक स्थल मौजूद हैं। तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की सकुशल आवाजाही करना वैसे भी चुनौती पूर्ण है। पूरा सरकारी अमला इन दिनों यात्रियों की सुरक्षित यात्रा में जुटा हुआ है। आने वाले दिनों में यह चुनौती बरकार है। आंतरिक तथा राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों को आवाजाही के लिए तैयार रखने की जरूरत बनी रहेगी। ऐसे में सरकारी अमले को इस मोर्चे पर भी चुनौती के साथ निपटना होगा। अब देखना यह है कि सरकारी अमला इस तरह की चुनौतियों से किस तरह पार पाता है। यही उसकी असली अगि परीक्षा का काल भी होगा।