भाजपा में गहराता असंतोष: रायपुर धर्मपुर के बाद पुरोला में बगावत के सुर, मालचंद ने किया चुनाव लड़ने का ऐलान

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देहरादून। आजकल उत्तराखंड भाजपा में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। पहले राजधानी की रायपुर विधानसभा,धर्मपुर विधानसभा एवं हरिद्वार जिले में पनप रहे असंतोष के बाद अब पुरोला सीट पर बढता असंतोष सामने आया है। उत्तरकाशी जिले की पुरोला विधानसभा सीट से विधायक राजकुमार को पार्टी ज्वाइन करा कर भाजपाई फूले नही समा रहे थे। लेकिन अब यह दावं उल्टा पडता नजर आ रहा है। राजकुमार के भाजपा में शामिल होने से पुरोला विधानसभा से दो बार भाजपा के टिकट से विधायक रह चुके पूर्व विधायक मालचंद ने बगावती तेवर अपनाते हुए कहा है कि वो 2022 का विधानसभा चुनाव जरूर लड़ेंगे। ऐसे में मालचंद का ये फैसला कहीं न कहीं भाजपा की चुनाव समिति के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है।

बीजेपी के पूर्व विधायक मालचंद ने साफ किया है कि वह हमेशा भाजपा के सिपाही के रूप में कार्य करते रहे हैं और करते रहेंगे। ऐसे में सियासी कयासबाजी लगाई जा रही है कि अगर बीजेपी साल 2022 के चुनाव में मालचंद का टिकट काटती है और हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए राजकुमार को टिकट देती है, तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

पुरोला विधानसभा के कांग्रेस विधायक राजकुमार की घर वापसी बाद भाजपा के दो बार के पूर्व विधायक मालचंद ने मीडिया के सामने अपनी चुप्पी तोड़ी है। पूर्व विधायक मालचंद ने कहा है कि वह 20वर्षों से भाजपा के सिपाही हैं और उन्होंने एक सच्चे सिपाही के रूप में हमेशा पार्टी की सेवा की है। पार्टी ने उनपर विश्वास भी जताया है। इसलिए उन्हें पूरी उम्मीद है कि उन्हें पार्टी टिकट देगी. लेकिन इशारों-इशारों में मालचंद ने पार्टी को यह संकेत भी दिए हैं कि अगर उनका टिकट कटता है, तो वह व्यक्तिगत तौर पर चुनाव लड़ेंगे।

मालचंद के बयान से तो यही लगता है कि अगर उनकी भाजपा में अनदेखी होती है। तो अन्य रास्ते भी अपनाए जा सकते हैं। हालांकि, कांग्रेस में शामिल होने के सवाल को उन्होंने स्थिति साफ करते हुए कहा कि वह हमेशा भाजपा के सिपाही ही रहेंगे। साथ ही राजकुमार का भाजपा में शामिल होने पर उन्होंने स्वागत किया और कहा कि भाजपा का कुनबा बढ़ा है।

मालचंद भाजपा से 2002 और 2012 में विधायक रह चुके हैं। इन चुनावों में मालचंद को मिले वोटों पर नजर डालें तो भाजपा आलाकमान पुरोला विधानसभा से आगामी चुनाव में इन आंकड़ों की पूरी पड़ताल कर ही कोई कदम उठाएगी। क्योंकि मालचंद ने जो दो चुनाव निर्दलीय रहते और भाजपा टिकट पर हारे हैं, वह अंतर मात्र 500 वोटों का ही है। ऐसे में अगर मालचंद का पार्टी से टिकट कटता है, तो बीजेपी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। क्योंकि मालचंद का अपना वोटबैंक है वो निर्दलीय भी किसी भी कैंडिटेट पर भारी पड़ सकते हैं।

साल 2002 विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से मालचंद को 13, 209 वोट मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रही शांति देवी को 10,238 मत पड़े थे। मालचंद 2,971 मतों से जीते थे।

2007 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राजेश जुवांठा को 15,467 मत पड़े थे। दूसरे स्थान पर निर्दलीय मालचंद को 14,942 मत पड़े थे। मालचंद 525 वोट के अंतर से हारे थे।

साल 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा टिकट से मालचंद को 18,098 मत मिले थे। निर्दलीय राजकुमार को 14,942 मत मिले थे। मालचंद ने 3832 मतों से जीत हासिल की थी।

2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट से राजकुमार को 17,798 मत मिले थे। भाजपा के मालचंद को 16, 785 मत मिले थे।मालचंद मात्र 413 मतों से हारे थे। मालचंद के इस व्यक्तिगत प्रभाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि पुरोला सीट पर मालचंद की अनदेखी भाजपा को बहुत महंगी पड़ सकती है। यदि भाजपा ने मालचंद को मैनेज नहीं किया तो पुरोला सीट पर विजय पताका फहराना भाजपा के लिए असंभव भी हो सकता है।