सुप्रीम कोर्ट में हुई हल्द्वानी मामले की सुनवाई, 50 हज़ार लोगों को फौरी राहत, 7 फरवरी को होगी अगली सुनवाई

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नहीं टूटेगा लोगों का आशियाना, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, प्रदेश सरकार के साथ ही रेलवे को नोटिस

नई दिल्ली। उत्तराखंड के हल्द्वानी में लगभग 50 हजार लोगों को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया था। मामले में अगली सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी। सुप्रीम कोर्ट में करीब आधा घंटा इस मामले पर बहस चली. बहस की शुरुआत में अतिक्रमण हटाने के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि लोगों को कोई अवसर नहीं दिया गया. यह कोविड के समय में हुआ. जस्टिस जे कौल ने कहा कि हमें एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा. कई कोण हैं, भूमि की प्रकृति, प्रदत्त अधिकारों की प्रकृति इन पर विचार करना होगा. हमने यह कहकर शुरू किया कि हम आपकी ज़रूरत को समझते हैं लेकिन उस ज़रूरत को कैसे पूरा करें।

उत्तराखंड सरकार, रेलवे को नोटिस
उत्तराखंड के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

हाईकोर्ट ने दिया था अतिक्रमण हटाने का आदेश
रेलवे का दावा है कि उसकी 78 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा है। रेलवे की जमीन पर 4365 कच्चे-पक्के मकान बने हैं। हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे की जमीन पर अवैध अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था।

विभिन्न संगठनों का धरना
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रभावित परिवारों के समर्थन में कई संगठनों ने बुधवार को बुद्ध पार्क में धरना दिया। संगठनों ने कहा कि मानवीय व नैतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए। कांग्रेस, सपा, बसपा समेत विभिन्न मुस्लिम संगठनों से जुड़े बाहरी लोग भी यहां पहुंचे। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर सपा का प्रतिनिधिमंडल बुधवार को बनभूलपुरा पहुंचा। मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन के नेतृत्व में दो घंटे तक लोगों से मुलाकात की गई। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को संसद में उठाया जाएगा। जरूरत पड़ने पर स्थानीय लोगों के प्रतिनिधिमंडल की रेल मंत्री और पीएम से भी मुलाकात करवाई जाएगी।

50 साल पुराना है रेलवे भूमि पर कब्जा
बताया जाता है कि बनभूलपुरा व गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर 50 साल पहले अतिक्रमण शुरू हुआ था। अतिक्रमण अब रेलवे की 78 एकड़ जमीन पर फैल गया है। स्थानीय लोगों का दावा है कि वे 50 साल से भी अधिक समय से यहां रह रहे हैं। उन्हें वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल आदि सभी सुविधाएं भी सरकारों ने ही दी हैं। लोग सभी सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। पीएम आवास योजना से भी लोग लाभान्वित हो चुके हैं। दावा है कि वे नगर निगम को टैक्स भी देते हैं। इनमें मुस्लिम आबादी की बहुलता है।

2007 में भी दिया था अतिक्रमण हटाने का आदेश

साल 2007 में भी हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। इसके बाद 2013 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल हुई। हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य संपदा अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे इज्जतनगर मंडल में 2018 से सुनवाई शुरू हुई थी। रेलवे के अनुसार अतिक्रमण की जद में आए 4365 वादों की सुनवाई के दौरान कोई भी कब्जे को लेकर ठोस सबूत नहीं दिखा पाया। किसी के पास भी जमीन संबंधित कागजात नहीं मिले।